“मेरी पहली नौकरी में, मैं सरकारी अमले की ब्यूरोक्रेसी का सामना कर रहा था। मेरे मन में कई सवाल थे, कुछ अपने काम को लेकर और कुछ दूसरों को प्रभावित करने के लिए। दूसरे दिन ही, मेरी टेबल पर एक अलवर बाबू का नोट आया जिस पर ‘अर्जेंट’ लिखा था। मैंने तत्परता दिखाई और उसे आगे बढ़ाया, लेकिन कुछ दिनों तक वह नोट वापस नहीं आया। मुझे आश्चर्य हुआ कि ‘अर्जेंट’ लिखने के बाद भी किसी ने ध्यान नहीं दिया।
बाद में, मैंने देखा कि अलवर बाबू की लगभग नोटिंग पर ‘अर्जेंट’ लिखा होता था। मैंने पूछा तो पता चला कि यह उनके काम करने का स्टाइल है। मैंने भी अब अर्जेंट लिखे वाली नोटिंग को गंभीरता से लेना बंद दिया ।
लेकिन एक दिन, मेरे पास एक अजीब सी नोटिंग आई जिस पर लिखा था, ‘माँ क़सम अर्जेंट है’। यह एक अजीब अनुभव था जिसने मुझे सरकारी अमले की ब्यूरोक्रेसी की वास्तविकता को समझने में मदद की