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नितिन गडकरी के बयान के बाद क्या वेस्टर्न रिफाइनरी को चलाना भविष्य में भारी घाटे का सौदा साबित होगा ?

 

मरकज़ी वज़ीर ज़नाब नितिन गडकरी ने एक बड़ा बयान दिया है, बयान के मुताबिक़ आपने फ़रमाया कि मज़ीद पांच सालों में मुल्क से पेट्रोल का इस्तेमाल ना के बराबर कर दिया जाएगा। इमकानात ये भी हैं कि ये इस्तेमाल में चलन में ही ना रहे ? ज़नाब मंत्री जी का ये फ़रमान  अकोला में डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि विश्वविद्यालय के 36वें दीक्षांत समारोह में बतौर महमाने ख़ुसूशी के तौर पर  शिरकत करने के दौरान आया है ।
पहले वज़ीर ए आज़म का कार्बन न्यूट्रेली 2070 तक का लक्ष्य और फिर अब क़ाबीना वज़ीर का अगले पाँच साल में पेट्रोल के चलन पर ये बयान बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है, इसमे कई सवाल तो ऐसे हैं जिन पर ग़ौर करने पर ऐसा महसूस होता कि जैसे  पेट्रोल के सरकारी सलाहकार और सरकार आमने सामने हों  ? दोनों एक दूसरे की बात को काट रहे हों ?

पूरी दुनियाँ अब हाइड्रोजन की तरफ़ बड़ रही है, सूत्र तक बता रहे हैं शायद यही वजह है की वेस्टर्न कॉस्ट रिफाइनरी में विदेशी कंपनियों ने फंड इन्वेस्टमेंट के मामले मैं अपना हाथ पीछे खींच लिया है, अरमको जैसी कंपनी जो भारत मैं इन्वेस्ट करना चाहती थी अब भारत में इन्वेस्ट करने के मामले में ख़ामोश है ? बीपीसीएल की नीलामी के लिए सरकार को कोई हाई बिडर नहीं मिल पाया जबकि अरमको,वेदांता,रिलायंस और भी कई अन्य विदेशी कंपनियों ने बीपीसीएल को ख़रीदने का सुनहरा ख़्वाब पाला था, पर उनके सही सलाहकारों ने सलाह दी की आज के इस बदलते युग में अब बीपीसीएल को ऊँचे दामों पर ख़रीदना एक अच्छे मुनाफ़े का सौदा क़तई नहीं होगा , नतीजा बीपीसीएल की नीलामी ख़त्म कर दी गई ?

वेस्टर्न कॉस्ट रिफाइनरी के नायब मुदीर के कुछ रिसालात डिजिटल रोज़नामचों के जारी हुए हुए थे, जिसमे आपने पेट्रोकेमिकल और एलपीजी की सब्सिडी पर अपने एक्सपीटीज़ का इज़हारे ख़याल किया था , पर सवाल ये है की जब ससरकार ने सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर बैन लगा दिया है तो फिर पेट्रोकेमिकल कहाँ ज़िंदा रह पाएगा ? जब क़ाबीना वज़ीर और ख़ुद और वज़ीर ए आज़म पेट्रोल के वैकल्पिक संसाधनों की बात कर रहे हैं तो फिर ब्राउन फील्ड एक्सपैंशन इन रिफाइनरी या फिर ग्रीन फील्ड रिफाइनरी या उसके एक्सपेंशन के बारे में  सोचना कहाँ तक वाजिब होगा ? शायद सरकारों को सलाह देने वाले बाबुओं की कोई मजबूरी रही हो तभी ऐसा महसूस हो रहा है कि  क़ाबीना मंत्री की बात उनके गले के नीचे नहीं उतर रही है ? हाल ही में एक बड़े सरकारी बाबू को हटा कर दूसरी जगह भेजा दिया गया है पर बड़े बाबू से ये  सवाल तो बनता है कि बड़े बाबू देश को और सरकार को ये बतायें बीपीसीएल को बेचने का उनका प्लान बी क्या था ? या सिर्फ़ प्लान ए पर ही सारी प्लानिंग की गई थी ? सवाल बीपीसीएल की बोली दे दौरान हुए खर्चे का भी है उसकी ज़िम्मेदारी किस के खाते में डाली जायेगी ? हालाँकि इस सवाल को हम कई बार लिखित मैं बीपीसीएल के सीएमडी से भी पूछ चुके हैं पर उनका कोई जवाब अभी तक नहीं आया है ?

जब अगले पाँच सालों में पेट्रोल की खपत ही ना के बराबर होने जा रही है  और बहुत मुमकिन है की ये चलन मैं ही ना रहे तो फिर वेस्टर्न कॉस्ट रिफाइनरी का बोझ क्यूँ ढोया जा रहा है ?  सरकार के सलाहकार क्यूँ अपनी आँखो पर पट्टी बांध कर इस प्रोजेक्ट को चलाने पर आमादा हैं ?  जबकि वाज़ीर ए आज़म और क़बीना वज़ीर अगले पाँच सालों में पेट्रोल पर निर्भरत ना रहने के लिए अपने कदम आगे बड़ा  चुके हैं ?  किसको सही मानें सरकारी सलाहकार बाबुओं को या वज़ीर ए आज़म और कबीना वज़ीर को ? ये फ़ैसला हमारे पाठक ख़ुद करें।

 

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