प्रकृति प्रेमी ‘ पर्यावरण के गाँधी व पहाड पुत्र स्व सुंदर लाल बहुगुणा को पर इन दिनो राजनीतिक दल अपनी नीजी स्वार्थ के लिए ओछी भाषा से उनकी मृत आत्मा को ठोस पहुंची है । उनके नाम की राजनीति दल के नेताओ के द्वारा अपनी स्वार्थ सिद्धि इस्तेमाल करने से सता के गलियारो मे भुचाल आया है ।
बीते रविवार की सुबह दिल्ली के आई टी ओ स्थित दीन दयाल उपाध्याय मार्ग जहाँ पर कई राजनीतिक दलो का कार्यालय है ।आजअवकाश के दिन व कोरोना काल मे भीड का जमावाड़ा लगा है। ऐसे माहोल में कानून व्यवस्था व्यवस्थित रहे इसकेलिए दिल्ली पुलिश के अलावे परा मेलेट्री के जबान बडी संख्या मे तैनात है। मै भी अपनी जिज्ञासा व पत्रकारिता के कर्तव्य का निर्वाह हेतु पहुँच थे। मेरी मन मे प्रशनो के उठते गिरते ज्वार भाटे के बीच मेरी नजर इस विरोध प्रदर्शन करती मे एक तेजस्वी युवा पर पड़ी । श्याद वे इस प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे थे । मैने अपने स्वाभाव के मताबिक उस युवा से सम्पर्क कर सीधे प्रदर्शन के बारे में जानना चाहा तो पता चला कि वे आज के विरोध प्रदर्शन की रैली में अपने आम आदमी पार्टी के दिल्ली – उत्तराखण्ड बिग के समर्थन मे आये है। वे स्वयं आम आदमी पार्टी के पुर्वाचंल शक्ति के प्रदेश अध्यक्ष युवा नेता व पर्यावरण प्रेमी संजय भगत है । संजय भगत के अनुसार विगत दिनो दिल्ली के लोक प्रिय मुख्यमंत्री माननीय अरविंद केजरीवाल के द्वारा दिल्ली विधानसभा परिसर में प्रतिमा के अनावरण से अंहकारी भाजपा व उनके नेता बौखला गई है ।भा ज पा के नेताओ ने पर्यावरण गांधी स्व सुंदर लाल बहुगुणा के खिलाफ घटिया भाषा का इस्तेमाल कर ना केवल उत्तराखण्ड ब्लकि पूरे देश को शर्मसार किया है। इस ओछी हरकत के लिए भाजपा को पुरे देश से माँफी मांगे नही तो उत्तराखंड , पहाड पुत्र के सम्मान में हम पूर्वांचली शक्ति संगठन (आप)उत्तराखण्ड के लोगो के साथ मिल कर इस लड़ाई को आगे बढ़ाएंगे। पुर्वांचल के लोग उत्तराखण्ड के लोगो के साथ आगामी विधानसभा चुनाव में इसका करारा जबाव हीअवश्य देगी। अगामी वर्ष पांच राज्यों में होने वाले चुनाव में भी भाजपा का हाल पश्चिम बंगाल जैसा ही होगा । बहुगुणा जी के समर्थक व पर्यावरण प्रेमी उत्तराखण्ड मे ही नही ब्लकि भारत के सभी हिस्से मे बसे है । जो अपने पर्यावरण गाँधी के खिलाफ अनर्गल भाषा का प्रयोग कर उत्तराखंड का ही नहीं, पूरे हिन्दुस्तान के लोगों का अपमान किया है । अगर भाजपा माफी नहीं मांगती है, तो आम आदमी पार्टी उत्तराखंड के लोगों के सम्मान के लिए इस लड़ाई को और गति देगी । आमआदमी पार्टी के दिल्ली-उत्तराखंड विंग व पुर्वाचंल शक्ति संयुक्त रूप से प्रचण्ड विरोध प्रर्दशन किया । भाजपा के नेताओ को पता होना चाहिए कि वेअंधभक्त ही नहीं है, बल्कि ये मंदबुद्धि के लोग भी है। जिस व्यक्ति को भारत सरकार का “पदम् श्री ” का सम्मान मिला है । उनके खिलाफ इस के गैर संवैधानिक भाषा का प्रयोग गैर जिम्मेदार ना हैं वे भी ऐसे सम्मानित व्यक्ति के लिए ।
हम आप से सुन्दर लाल बहुगुणा के विषय मे विस्तृत रूप से चर्चा करते है | सुन्दर लाल बहुगुणा का सम्पूर्ण जीवन पेड़ और पहाड़ को समर्पित था। कोरोना काल मे चिपको आंदोलन के प्रणेता और पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का निधन से भारत ही नहीं, दुनिया भर के पर्यावरण प्रेमियों के लिए एक बड़ा झटका लगा था। आज हमने दुनिया के सबसे बड़े प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षक को खो दिया। प्रकृति-पर्यावरण के लिए इतना चिंतित व्यक्ति किसी और को नहीं देखा। 1970 के दशक में जब चिपको आंदोलन जोरों पर था, तो पर्यावरण संरक्षण का जो संकेत हमारे देश से दुनिया भर में पहुंचा था, वही उस समय के वैश्विक पर्यावरण संरक्षण का मूल आधार बना।
सुंदरलाल बहुगुणा जी ने हमेशा एक ही बात कहने की कोशिश की कि परिस्थिति की और आर्थिक को अलग न करें। स्थिर अर्थव्यवस्था स्थिर प्रस्थिति की पर ही निर्भर करती है। आज अगर हमें लगता है कि प्रकृति का अंधाधुंध दोहन करके हम अपनी अर्थव्यवस्था को किसी भी ऊंचाई पर पहुंचा सकते हैं, तो हम नीचे से अपनी जमीन को खिसका रहे हैं। और वही सामने आया है। बढ़ते वैश्विक तापमान को लेकर आज दुनिया भर में जो चर्चाएं हो रही हैं, और जिस तरह से जलवायु परिवर्तन का खतरा हमारे ऊपर मंडराने लगा है, यह वही है, जिसकी तरफ सुंदर लाल बहुगुणा ने इशारा किया था।
सुंदर लाल बहुगुणा का व्यक्तित्व अनूठा था। मैंने कभी गांधी जी का दर्शन नहीं किया था, लेकिन बहुगुणा जी के व्यक्तित्व में ही मैंने गांधी का दर्शन किया। मैं इसकी व्याख्या नहीं कर पाऊंगा, लेकिन यह बात सच है कि उनके भीतर इतनी सरलता थी, चाहे भोजन को लेकर हो या पहनावे को लेकर हो, कि वह कभी भी किसी आडंबर का हिस्सा नहीं बनते थे। सादा जीवन-उच्च विचार उनके व्यक्तित्व पर पूरी तरह चरितार्थ होता था। उनकी सोच बहुत ही स्पष्ट और पैनी थी। वह इसी बात पर केंद्रित थे कि मनुष्य को अपने चारों तरफ के पर्यावरण को हमेशा बेहतर बनाने की निरंतर कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि यह जीवन के सवालों का
सबसे बड़ा उत्तर है और दुर्भाग्य से जिसकी हमने उपेक्षा की है।
सिर्फ पर्यावरण ही नहीं, देश के लिए जान न्योछावर करने वाले के प्रति उनकी कैसी भावना थी ।
सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म नौ जनवरी, 1927 को टिहरी जिले में भागीरथी नदी किनारे बसे मरोड़ा गांव में हुआ। 13 साल की उम्र में अमर शहीद श्रीदेव सुमन के संपर्क में आने के बाद उनके जीवन की दिशा बदल गई। सुमन से प्रेरित होकर वह बाल्यावस्था में ही आजादी के आंदोलन में कूद गए थे। वह अपने जीवन में हमेशा संघर्ष करते रहे और जूझते रहे। चाहे पेड़ों को बचाने के लिए चिपको आंदोलन हो, चाहे टिहरी बांध का आंदोलन हो, चाहे शराबबंदी का आंदोलन हो, उन्होंने हमेशा अपने को आगे रखा। नदियों, वनों व प्रकृति से प्रेम करने वाले बहुगुणा उत्तराखंड में बिजली की जरूरत पूरी करने के लिए छोटी-छोटी परियोजनाओं के पक्षधर थे। इसीलिए वह टिहरी बांध जैसी बड़ी परियोजनाओं के पक्षधर नहीं थे। जब भी उनसे बातें होती थीं, तो विषय कोई भी हो, अंततः बात हमेशा प्रकृति और पर्यावरण की तरफ मुड़ जाती थी। उनके दिलोदिमाग और रोम-रोम में प्रकृति के प्रति सम्मान और संरक्षण की भावना थी। उन्होंने अपने कार्यों से अनगिनत लोगों को प्रेरित किया और मैंने तो उनसे काफी कुछ सीखा। वह अपने काम के प्रति हमेशा तल्लीन रहते थे और पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रतिबद्ध थे। मैं उन्हें पिता की तरह मानता था और उनके सुझाए मार्गों पर चलकर ही मैं अपने कार्यों को आगे बढ़ाने की कोशिश करता हूं। सुंदरलाल बहुगुणा जी का सत्याग्रह सिर्फ उत्तराखंड तक सीमित नहीं था। वह बड़े बांधों के विरोधी थे और उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों में बड़े बांधों के खिलाफ हुए आंदोलनों में हिस्सा लिया या उन्हें प्रेरित किया। 1980 के दशक के मध्य में छत्तीसगढ़ के बस्तर के भोपालपटनम में और उससे सटे गढ़चिरौली में इचमपल्ली में प्रस्तावित दो बड़े बांधों को लेकर आदिवासियों ने बड़ा आंदोलन किया था। नौ अप्रैल, 1984 को इस मानव बचाओ जंगल बचाओ आंदोलन के तहत हजारों आदिवासी पैदल चलकर गढ़चिरौली मुख्यालय तक पहुंचे थे। आदिवासी नेता लाल श्याम शाह और सामाजिक कार्यकर्ता बाबा आम्टे के साथ ही इस आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए चिपको आंदोलन के प्रवर्तक सुंदरलाल बहुगुणा भी विशेष रूप से वहां उपस्थित थे। टिहरी से करीब 1,800 किलोमीटर दूर स्थित गढ़चिरौली में उनकी उपस्थिति ने इस आंदोलन में जोश भर दिया था। चिपको आंदोलन को लेकर जब उनसे एक साक्षात्कार में पूछा गया था कि पेड़ों को बचाने के लिए आपके मन में यह नवोन्मेषी विचार कैसे आया, तो उन्होंने जो कुछ कहा उसमें उनके जीवन का सार नजर आता है। उन्होंने काव्यात्मक जवाब देते हुए कहा, क्या है जंगल का उपकार, मिट्टी, पानी और बयार। मिट्टी, पानी और बयार हैं जीने के आधार। इसका अर्थ है कि वनों ने हमें शुद्ध मिट्टी, पानी और हवा दी है, जो कि जीवन के लिए आवश्यक हैं। उन्होंने बताया था कि चिपको आंदोलन मूलतः पहाड़ की महिलाओं का शुरू किया आंदोलन था। ये महिलाएं नारा लगाती थीं, लाठी गोली खाएंगे, अपने पेड़ बचाएंगे। आज प्रकृति के पुत्र व पर्यावरण गाँघी भौतिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके विचार, उनके कार्य अपने प्रकृति प्रेमी के मध्य सदा ही याद किये जायेगे ।उनके सुझाए व उसके बताये गये मार्गों पर चलकर और प्रकृति व पर्यावरण के प्रति जागरूक भाव रखकर ही हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं।
इस बात को राजनीति के नेताओ को भी ध्यान मे रख अपनी राजनीति लाभ के लिए ओछी हरकत से उपर उठकर सम्मान करना चाहिए ।
फिर आप के समक्ष फिर मिलेगे तीरक्षी नजर से तीखी खबर के साथ | फिलहाल हम बिदा लेते है यह कहते हुए ना ही काहूँ से दोस्ती ‘ ना ही काहूँ से बैर । खबरीलाल तो मांगे ,सबकी खैर॥