हमेशा यह प्रयास करता हूं कि सदन में अधिकतम कार्य हो और जनता से जुड़े सभी मुद्दों पर चर्चा हो-लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला
संसद में 11अगस्त21 की घटना 'लोकतंत्र'की हुई हत्या ? :खबरीलाल
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के मन्दिर (राज्य सभा )11 अगस्त की घटी घटना के लिए आखिर जिम्मेदार कौन ? यह ज्वलंत प्रशन हमारे अन्तर्मन व सता के गलियारो में ‘ राजनीति के चौपाल मे ‘ राजनीति के जानकार के अलावे देश के प्रत्येक जिम्मेदार नागरिक के मध्य मे
दबी जुबान में चर्चा व चिन्ता का विषय बनी है । इन दिनो एक ओर भारतवासी अपने देश की आजादी के 75 वे स्वतंत्रता दिवस को “आजादी के अमृत महोत्सव “की जश्न मानने की तैयारी मे व्यस्त है , वही दुसरी ओर संसद की इस दुःखद घटना से दुःखी भी । स्वतंत्रता के75 वें बर्ष के उपरान्त विश्व के सबसे बडे प्रजातंत्र के इतिहास के पन्ने मे जहाँ विश्व के राजनीति के पटल पर स्वर्ण अक्षरों में अंकित है ‘ वही 11 अगस्त 21 को
संसद के वर्तमान मानसून सत्र के दौरान राज्य सभा के सत्तापक्ष – विपक्ष सांसदो के मध्य में अप्रत्याशित हाथापाई की घटना से ना केवल संसद के दोनो सदन के सांसद ब्लकि भारत वासियो का सर शर्म से झुक गया है।
हमारे लोकतंत्र के मन्दिर (संसद) में शोर – सरावे से भरे इस संसद के दोनों सदनों-लोकसभा और राज्यसभा- को निर्धारित समय से दो दिन पहले बुधवार को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया। 19 जुलाई को शुरू हुए सत्र में दोनों सदनों में जहाँ गतिरोध देखा गया और वही दुसरी ओर विपक्ष ने पेगासस जासूसी के आरोपों और तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने और सरकार से सहमत नहीं होने पर बहस कराने की अपनी मांग पर अडी रही। संसद के इस मानसून सत्र के दौरान सरकार ने
लोकसभा ने केवल 22 प्रतिशत की कार्य का निस्तारण करते हुए 96 घंटे के निर्धारित समय के मुकाबले मात्र 21 घंटे 14 मिनट तक कार्य किये गये। यह आंकड़े पिछले बजट सत्र के बिल्कुल विपरीत था जब निचले सदन ने कार्यवाही में 114 प्रतिशत कार्य निस्तारण देखी गई थी।
इस बजट सत्र के दौरान की गई 90 प्रतिशत कार्य निस्तारण के विपरीत राज्यसभा ने इस सत्र में कुल कार्य 28 प्रतिशत देखी गई। जबकि संसद के उच्च सदन मे व्यवधानों के कारण 76 घंटे से अधिक का समय व्यर्थ मे गंवाना पड़ा, वहीं पूरे सत्र में सरकार के द्वारा 19 विधेयकों को पारित किया गया।इस सत्र में सदन को चलने न देने के साथ ही सता पक्ष के द्वारा विपक्ष पर सदन कि मर्यादा को तार-तार करने का आरोप लगाया । चाहे वह राज्यसभा में मंत्री के हाथ से प्रस्ताव छीनकर फाड़ने कि बात हो, या सदन की अध्यक्षता कर रहे अध्यक्ष की कुर्शी की तरफ बढ कर वेल मे अपना विरोध करने जैसे वाक्या हों, हद तो तब हो गई जब सदन में मारपीट तक की नौबत आ गयी । जिसे सदन की कार्यवाही ठीक से संचालित नहीं हो सकीं। इस दुर्भाग्य पूर्ण घटना को लेकर बुधवार को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि उन्हें इस बात का दुख है कि इस सत्र में सदन की कार्यवाही उम्मीद के मुताबिक नहीं हुआ। उन्होंने कहा, “मैं हमेशा यह का प्रयास करता हूं कि सदन में अधिकतम कार्य हो और जनता से जुड़े सभी मुद्दों पर चर्चा हो।” लेकिन पूरे सत्र के दौरान उथल पुथल व शोर सरावे की भेट चढ गई । जहाँ विपक्ष अपने माँगो को ले कर सदन में अपनी बात अड़ी रही ‘ तो वही सता पक्ष किसी हाल मे संसद के सदन चर्चा ना कराने के अपनी जिद पर अडी थी ।इस मानसून सत्र मे लोकसभा में कामकाज की कार्यो का निस्तारण 49.5 प्रतिशत थी। प्रश्नों की निस्तारण 27.4 प्रतिशत, गैर-विधायी (Non Legislation) की 6 प्रतिशत और वित्तीय व्यवसाय की 0.7 प्रतिशत थी।संसद के वर्तमान सत्र मे लोक सभा कि ही भांति राज्यसभा में भी व्यवधान आया । राज्य सभा के सभापति वेंकैया नायडू ने बुधवार को सदन में कहा कि कुछ विपक्षी सांसदों ने सदन की पवित्रता को नष्ट कर दिया। वही अच्छी बात इस सत्र मे सभी दल सता पक्ष – विपक्ष मे आपसी राजनीतिक असहमतियों के बाबजूद विपक्ष ने एकमत में, सदन के अंदर तीखे विचारो के आदान-प्रदान में मध्य एक अल्प विराम का देते हुए, ओ बी सी बिल पर आने पर सरकार के साथ सहयोग किया। संविधान (127वां संशोधन) विधेयक, 2021 मंगलवार शाम लोकसभा में सभी दलों के भारी समर्थन से पारित हो गया। यह विधेयक, जो सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानो मे प्रवेश कोटा के अनुदान के लिए सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान और अधिसूचना द्वारा अपनी ओ बी सी सूची बनाने के लिए राज्यों की शक्तियों को बहाल करता है, उसको बुधवार को राज्यसभा में पारित किया गया।
वहीं दुसरी तरफअपने स्वार्थ के चलते सत्ता व विपक्ष ने कई बिलों पर चर्चा नहीं होने दी और न ही सरकार प्रस्ताव रख पायी। इन बिलों में एक बिल था बिजली संशोधन विधेयक 2021। इस बिल से बिजली कर्मियों और बिजली उपभोक्ताओं पर व्यापक प्रतिकूल असर होने का दावा किया जा रहा था, परंतु विपक्ष उस मुद्दे पर बात करने के लिए बिलकुल तैयार नहीं दिखी । आरक्षण मुद्दे पर सता पक्ष व विपक्ष के सांसद आपस मे सहमत मजबुरी थी। क्यो कि आगामी 2022 में देश में उत्तर प्रदेश जैसे अन्य 8 राज्यों में विधान सभा के चुनाव होने वाले हैं ।जहां ओ बी सी समुदाय का वोटों पर खासा प्रभुत्व है। इसका विरोध करना सता पक्ष व विपक्षी नेता ओ को अपनी पार्टियों व अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होता।
इस सत्र के दौरान संसद में पारित किए गए अन्य विधेयकों में केंद्रीय विश्व विद्यालय(संशोधन)विधेयक 2021,संविधान (अनुसूचित जनजाति)आदेश(संशोधन)विधेयक,न्यायाधिकरण सुधार विधेयक, 2021 , जमा बीमा और क्रेडिट गारंटी निगम(संशोधन)विधेयक,2021,सीमित देयता भागीदारी(संशोधन)विधेयक20 21, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग विधेयक,नारियल विकास बोर्ड (संशोधन) विधेयक, 2021, दिवाला और दिवालियापन संहिता (संशोधन) विधेयक, 2021, आवश्यक रक्षा सेवा विधेयक, 2021 और अंतर्देशीय पोत विधेयक,2021जैसे विधेयक शामिल हैं।
चिन्ता का विषय है कि सदन और सत्र की मर्यादा को नष्ट करने वाले सता व विपक्षी नेतागण यदि इसे अपनी स्वतंत्रता कहते हैं तो इससे कष्ट दायक क्या होगा। सदन के इस घटना के विषय में राजनेता और राजनीति दल पर देश की जनता कैसे भरोसा करें । जनता ने अपने जन प्रतिनिधि के रूप मे जिन नेताओं को बडी उम्मीदे व आशा की किरणे के विश्ववास कर जन प्रतिनिधि के रूप मे चुन कर संसद में भेजती है। अगर वे ही ऐसे व्यव्हार संसद मे जा कर करेगे । यह एक अति गंभीर व गहन विचार और विर्मश का विषय है । जैसा कि सर्व विदित है कि देश में कोई भी कानून तब ही बन सकता है जब उसके लिए सदनों में स्वस्थ्य व शांति के माहोल मे चर्चा हो, जो इस मॉनसून सत्र में विपक्ष की ओर से बार बार माँग करने के बावजूद भी सरकार के द्वारा संसदीय प्रणाली के तहत चर्चा नही कराई गई , वे भी तब जब सरकार के पास दोनो सदन मे प्रचण्ड बहुमत प्राप्त है , यह बात मेरी समझ मे नही आ रही है।
दुसरी बात गौर करने वाली यह है कि लोकसभा (स्पीकर ) अध्यक्षऔर राज्य सभा के सभापति सदन में संवैधानिक पद आसीन अध्यक्ष / सभापति की पुरे सदन का होता है ना कि केवल सरकार या सत्ता पक्ष का । अथार्त सदन को सुचारू रूप से चलाने की नैतिक जिम्मेदारी सदन के अध्यक्ष / सभापति की होती है जिसके लिए हमारे संविधान निर्माता ने उन्हे संवैधानिक शक्ति प्रदान की है। अगर सदन सुचारू नहीं चल पाता है तो सदन के अध्यक्ष का व्यथित होना लाजमी है। उनके दुख पर हमे दुखी चाहिए। लेकिन इसी के साथ इस बात का भी मूल्यांकन किया जाना चाहिए कि दोनों की व्यथा किसकी तरफ एंगित करता है ये चिन्तन मनन का विषय है। वही कई सबाल संदेह के घेरे मे खडा करता है कि जो कि सरकार की तरफ भी एंगित करती है ।जिस पर सदन को सुचारू रूप से चलाने -की जवाबदेही किसकी है? इस व्यवस्था के अनुसार सरकार की नाकामी साप झलकती है? दोनों सदनों के आदरणीय अध्यक्षों को यह नोट करना चाहिए कि उनकी चिन्ता का एक पक्षीय इस्तमाल होने लगा है। उनके आंसुओं का इस्तेमाल सरकार विपक्ष के ख़िलाफ़ कर रही है। इसका सबसे बडा प्रमाण गोदी मीडिया के द्वारा इस घटना को जिस तरह से अंध भक्तो के समक्ष पेश कर रहा है। यह बहुत ज़रूरी है तभी जनता समग्र रुप से देख पाएगी कि दोनों की चिन्ताओं में दोनों पक्षों की भूमिका शामिल है या केवल विपक्ष की भूमिका शामिल है?
यह भारत के लोकतंत्र का बेहद नाज़ुक मोड़ है।इस मोड़ पर दोनों सदनों के अभिभावकों की भूमिका और अधिक नाज़ुक और संवेदनशील हो जाती है ।
विपक्ष ने सदन नहीं चलने दिया। यह बात प्रमुखता से जनता के बीच पहुंचाई जा चुकी है। इस तथ्य से दोनों सदनों केअभिभावक अनजान नहीं रह सकते कि गोदी मीडिया के साम्राज्य में विपक्ष को कितनी जगह दी जा रही ये किसी से आज छुपी नही है। हर ख़बर पर सरकार की टेड़ी नज़र से पेश हो रही है। अगर दोनों सदनों के अभिभावक लोकतंत्र को लेकर चिन्तित हैं तो उनकी चिन्ता में यह बात शामिल होनी चाहिए और यह भी कि जब विपक्ष के सदस्य सदन के भीतर प्रदर्शन करते हैं तो उसका प्रसारण क्यों रोक दिया जाता है? आख़िर जब सरकार उन उदाहरणों का ज़िक्र कर रही है कि कोई सदस्य मेज़ पर चढ़ गया तो किसी ने नियम पुस्तिका आसन की तरफ उछाल दी तो इसे क्यों नहीं दिखाया जाता है। क्या विपक्ष का आरोप सही है कि विरोध की गतिविधियों का सीधा प्रसारण नहीं होता है? जब प्रसारण नहीं होता है तो उसका ज़िक्र क्यों किया जाता है?
यह उन्हें भी आश्वस्त करेगा कि विपक्ष ने जो भी किया है जनता के बीच पहुंचा है। गोदी मीडिया के कारण यह बात जनता के बीच नहीं पहुंची है कि सरकार ने सदन क्यों नहीं चलाया? सरकार की तरफ से भी यही बात पहुंची है कि विपक्ष ने सदन नहीं चलने दिया है। मोदी सरकार के पास 300 से अधिक सांसदों का समर्थन है। किसी भी नियम के तहत संसद मे चर्चा हो और उस पर हर बार मतदान हो तो भी इस सरकार की स्थिरता पर कोई असर नहीं होता है। एक सुरक्षित सरकार ने विपक्ष की मांग मान लेने की उदारता क्यों नहीं दिखाई?ओबीसी बिल पर हुई चर्चा में भागीदारी और मतदान साबित करता है कि विपक्ष ने सरकार का अंध विरोध नहीं किया। विपक्ष ने अपनी उदारता का प्रदर्शन किया और व्यापक सामाजिक हित में चर्चा में हिस्सा लिया। यह इशारा करता है कि विपक्ष हर वक्त सरकार को सुनने के लिए तैयार था लेकिन सरकार अपनी ही सुनाने में लगी रही, उससे पीछे नहीं हटी। क्या सरकार ने ओबीसी बिल पर विपक्ष की भागीदारी का एक अवसर के रुप में उठाने का प्रयास किया? क्या यह मौक़ा नहीं था कि सरकार भी दो कदम पीछे हट सकती थी और विपक्ष की मांग मान सकती थी? यह सवाल है। लोकसभा के स्पीकर और राज्य सभा के सभापति को इस पर अपनी राय स्पष्ट करनी चाहिए। उम्मीद है आने वाले दिनों में मीडिया या किसी अन्य मंच से इंटरव्यू में करेंगे ही।
लोकतंत्र की चिन्ता में डूबी जनता को दोनों पक्षों की भूमिका स्पष्ट करनी चाहिए कि बिना चर्चा के बिल क्यों पास हुए। अगर विपक्ष ने किसी बिल को सलेक्ट कमेटी में भेजने का आग्रह किया गया तो क्यों नहीं स्वीकार किया गया? क्या विपक्ष का यह आग्रह सही है कि ज़्यादातर बिल अब सलेक्ट कमेटी में नहीं भेजे जाते हैं जहां पर हर दल के सासंद दिमाग़ से गहराई से चर्चा करते हैं। राज्य सभा के सभापति को यह भी बताना चाहिए कि क्या यह सही है कि पिछले पांच साल में प्रधानमंत्री ने राज्य सभा में एक भी प्रश्न का जवाब नहीं दिया है? तृणमूल सांसद डेरेकओ ब्रायन ने आरोप लगाया है। इन सवालों के जवाब से भरोसा बढ़ेगा कि हमारे देश की विधायिका के सर्वोच्च अभिभावक लोकतंत्र को सुचारु रुप से चलाने और बनाए रखने में सरकार की भूमिका को लेकर भी चिन्ती हैं।
मानसून सत्र में जो हुआ, किसी भी राष्ट्र प्रेमी को अच्छा नहीं लगना चाहिए। लेकिन यह ग़लत होगा कि सिर्फ विपक्ष की भूमिका को लेकर अच्छा नहीं लग रहा है। जानना ज़रूरी है कि सरकार की क्या भूमिका व मनसा सही थी?
ऐसे अनगिनत प्रशन जनता के मन मे ज्वार – भाटा कि तरह है ! श्याद जनता के इन अनसुलझे प्रशनो का जबाव सता व विपक्ष के पास ना हो ‘ लेकिन भारत के जिम्मेदार नागरिक आगामी वर्षे राज्यो के विधान सभा मे दे ‘ नेता जी आप का भविष्य जनता ही करेगी । क्योकि ये पब्लिक है बाबू सब जानती है । कब किसको कहाँ क्या जबाब देना है।
फिलहाल हम आप से यह कहते हुए विदा लेते है ‘ ना ही काहूँ से दोस्ती ‘ ना ही काहूँ से बैर । ।
खबरीलाल तो मांगे, सबकी खैर॥
फिर मिलेगे ‘ तीरक्षी नजर से तीखी खबर के साथ ।
तब तक के लिए अलविदा ।
(प्रस्तृति विनोद तकिया वाला स्वतंत्र पत्रकार ,स्तम्भकार)