भारतीय यात्री और विमानन-भगवान भरोसे !
बाक़ी भारतीय एयरलाइंस भी कुछ ख़ास नहीं कर पा रही हैं महज़ पब्लिक सेक्टर से प्राइवेट सेक्टर में कम्पनियों को बदल देने से उन में सुधार आने की कोई गारंटी नहीं होती। प्राइवेट कम्पनियाँ पब्लिक सेक्टर से बनी हुई बेश क़ीमती पूँजी को हथिया कर बेतहाशा मुनाफ़ा तो वसूलती है पर कर्मचारी और ग्राहकों की वैल्यू को ख़त्म कर देती हैं
अब ऐसे में भारतीय लाचार यात्री करें तो क्या करें ?
(भारतीय) एयर इंडिया को प्राइवेट हाथों में सौंपने के लिये जिस तरह से कुछ मुट्ठी भर लोगों ने अपना निजी स्वार्थ पूरा करने के लिये जो हु-हल्ला मचाया उसे देखते ही बनता था, नित नये सगूफ़े छोड़ना पानी पी-पी कर सरकार द्वारा संचालित इस एयरलाइन के प्रबंधन को कोसना उन मुट्ठी भर लोगों और उनके भक्तों की एक आदत सी बन गई थी, आख़िर सरकार को बहकाने में और अपना निजी स्वार्थ पूरा करने में ये मुट्ठी भर लोग कामयाब तो हो गये पर ज़रा सोचियें ? आम जन को इस से क्या हासिल हुआ ? जब ये एयरलाइन भारतीय सरकार के प्रबन्धन में थी तब कम से कम जवाबदेही तो थी पर आज जब ये प्राइवेट हाथों में है तो क्या कोई जवाबदेही दिखती देती है ?
जैसा की हमने पहले भी अपने पाठको को इस लेख से पहले वाले लेख में बताया था की इण्डियन एविएशन सेक्टर में भयंकर हालात बने हुए है। एयर सेफ़्टी ,एयर क्राफ़्ट मेंटेनेन्स की बात हो या फिर टिकटों में मन चाहें तरीक़े से कमर्शियल एयरलाइंस द्वारा पैसे वसूलने की ,सब जगह यात्रियों को लूटने के सिवा कुछ दिखाई नहीं देता! ऐसे कई ज्वलंतशील उदाहरण हमारे सामने हैं जिनकी वजह से लाचार यात्री अपना मुँह बंद करके ये सब सहने को मजबूर हैं । अर्थात् भारतीय कमर्शियल एयरलाइंस पब्लिसिटी और इमेज बिल्डिंग में पैसा खर्च करके यात्रियों को नित नये लुभावने वादे दे कर फँसाती है और जब यात्री इनके चंगुल में आ जाता है तो उसे बीच भँवर में छोड़ देती है।
एक भुगतभोगी के मुताबिक़, हाल ही में एयर इंडिया https://www.airindia.com/की अंतर्राष्ट्रीय यात्रा में जिस तरह का लंबा विलंब अतंराल के दौरान देखने को मिल रहा है उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, १६ घंटे से ले कर कई दिन तक का विलंब देखने को मिल रहा है, इस विलंब की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है। इन हालातों में यात्रीगण को किसी तरह की कोई भी सहायत्ता एयरलाइंस द्वारा नहीं प्रदान कराना भी एक अति गंभीर मुद्दा बन गया है, नौबत यहाँ तक आ पहुँची हैं कि एक गिलास पानी से ले कर बैठने या खड़े होने तक की जगह उपलब्ध नहीं कराई जाती है, कई बार तो पानी भी भीख की तरह माँगना पड़ता है, अंतर्राष्ट्रीय यात्रा में इस तरह का अमानवीय आचरण निंदनीय है । हम अक्सर ये देखते हैं कि यात्रा में लंबा विलंब होने पर कई अंतर्राष्ट्रीय एयरलाइंस हेल्प डेस्क या की स्वसंचालित व्यवस्था कराती हैं ताकि उनके यात्रियो को कोई असुविधा का सामना न करना पड़े , ज़्यादा विलंब होने पर लाउंज या होटल की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाती है
एयर इंडिया अपने अंतर्राष्ट्रीय यात्रियो के लिये ऐसा क्यों नहीं करवा पा रही? अब ऐसे में लाचार यात्री करें तो क्या करें ? हम अपने पाठकों को कई बार बता चुके हैं कि महज़ पब्लिक सेक्टर से प्राइवेट सेक्टर में कम्पनियों को बदल देने से उन में सुधार आने की कोई गारंटी नहीं होती। प्राइवेट कम्पनियाँ पब्लिक सेक्टर की बनी हुई बेश क़ीमती पूँजी को हथिया कर बेतहाशा मुनाफ़ा तो वसूलती है पर कर्मचारी और ग्राहकों की वैल्यू को ख़त्म कर देती हैं, कर्मचारियों और ग्राहकों के ज़ीरो मूल्यांकन की चिंता के बारे में पहले भी कई आर्थिक सलाहकारों बुद्धिजीवियों ने प्रकट की है पर उनकी आवाज़ निजी स्वार्थ वाले सरकारी बाबुओं कि आवाज़ में कहीं गुम सी हो जाती है। Psu को निजी हाथों में देने से आप ग्राहकों के हित को बिलकुल ख़त्म कर देते हैं और एसेट्स में मिली पूँजी से किस तरह से मुनाफ़ा कमाना है एयर इंडिया इस मामले में एक जीता जागता उदाहरण है।
बाक़ी भारतीय एयरलाइंस भी कुछ ख़ास नहीं कर पा रही हैं । सिर्फ़ और सिर्फ़ मुनाफ़े की वसूली की रेस में एक दूसरे से आगे निकलना चाहती हैं , गो-फ़र्स्ट एयरलाइन https://www.flygofirst.com का उदाहरण सबके सामने है जो की रोज़ एक नई तारीख़ पुनः खोलने के लिये ऐलान तो करे हैं पर कब पुनः खोलेंगे इसका उनके अलावा किसी को पता नहीं हैं और सिविल एविएशन मन्त्रालय भी इस पर चुप्पी साधे हुए है।
अभी हाल ही में विस्तारा की फ़्लाइट नंबर ७२५ का उदाहरण हमारे सामने है जिस में एक जहाज़ अचानक रनवे से इमरजेंसी ब्रेक लगा कर वापस लोट आता है और लोट आने का कोई कारण सवारियों को नहीं बताया जाता है यात्रियों को जो असुविधा हुई वो तो हुई पर इस होने वाली असुविधा के लिये कोई कारण बताने को तैयार नहीं हुआ, खेद जताना तो दूर की बात सवारियों को बैठने या पानी पीने तक का इंतज़ाम नहीं किया गया एक यात्री के मुताबिक़ पानी के लिये भी भीख सी माँगना पड़ रही थी! ऐसा लगता है कि विस्तारा एयरलाइन भी एयर इंडिया की राह पर चल पड़ा है।
इससे महज़ एक या दो दिन पहले दो एक ही रनवे पर दो एयरकाफ़्ट आमने सामने हो गये थे जिस से एक भयंकर अनहोनी होने से बाल बाल बची, मीडिया की रपट के अनुसार एयर ट्रैफ़िक कंटोरल के कर्मचारी को निलंबित कर दिया गया यानी पहली नज़र में कुछ गलती तो ज़रूर हुई है।
ये बड़ी ही हैरानी की बात है कि इतने कौशल और काबिल मंत्री होने के वाबज़ूद सिविल एविएशन सेक्टर इन हालातों से गुजर रहा है । मानो कि पूरा सेक्टर भगवान भरोसे चल रहा है ! और किसी भी वक़्त इस अति संवेदनशील सेक्टर में मार्मिक दुर्घटना हो सकती है। ये सोचते हुए भी रूह काँप जाती है कि इण्डियन एविएशन पर विश्वास रखने वाले घरेलू और अंतर्राष्टीय यात्रीगण का क्या हस्र होगा।