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पंडित चन्द्रशेखर ‘आज़ाद जी शहीद राम प्रसाद बिस्मिल व शहीद भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारियों में से थे।

भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के महान सैनानी शहीद पंडित चन्द्रशेखर ‘आज़ाद जी की 116वी जयन्ती मौ. जाकिर अली सैफी के नेतृत्व मे क्षेत्र के लोगों के साथ क्षेत्रीय कार्यालय जस्सीपुरा पर माल्यार्पण व पुष्प अर्पित कर मनायी गयी। इस मौके पर मौ. जाकिर अली सैफी ने सम्बोधन मे कहा कि शहीद पंडित चन्द्रशेखर ‘आज़ाद जी शहीद राम प्रसाद बिस्मिल व शहीद भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारियों के अनन्यतम साथियों में से थे।

चन्द्रशेखर आजाद का जन्म भाबरा गाँव (अब चन्द्रशेखर आजादनगर) (वर्तमान अलीराजपुर जिला) में एक ब्राह्मण परिवार में 23 जुलाई 1906 को हुआ था।उनके पूर्वज ग्राम बदरका वर्तमान उन्नाव जिला (बैसवारा) से थे। आजाद के पिता पण्डित सीताराम तिवारी अकाल के समय अपने पैतृक निवास बदरका को छोड़कर पहले कुछ दिनों मध्य प्रदेश अलीराजपुर रियासत में नौकरी करते रहे फिर जाकर भाबरा गाँव में बस गये। यहीं बालक चन्द्रशेखर का बचपन बीता। उनकी माँ का नाम जगरानी देवी था। आजाद का प्रारम्भिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित भाबरा गाँव में बीता अतएव बचपन में आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष-बाण चलाये। इस प्रकार उन्होंने निशानेबाजी बचपन में ही सीख ली थी। बालक चन्द्रशेखर आज़ाद का मन अब देश को आज़ाद कराने के अहिंसात्मक उपायों से हटकर सशस्त्र क्रान्ति की ओर मुड़ गया। उस समय बनारस क्रान्तिकारियों का गढ़ था। वह मन्मथनाथ गुप्त और प्रणवेश चटर्जी के सम्पर्क में आये और क्रान्तिकारी दल के सदस्य बन गये। क्रान्तिकारियों का वह दल “हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ” के नाम से जाना जाता था।

दिनांक 17 दिसम्बर, 1928 को चन्द्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह और राजगुरु ने संध्या के समय लाहौर में पुलिस अधीक्षक के दफ़्तर को जा घेरा। ज्यों ही जे. पी. सांडर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साइकिल पर बैठकर निकला, पहली गोली राजगुरु ने दाग़ दी, जो साडंर्स के मस्तक पर लगी और वह मोटर साइकिल से नीचे गिर पड़ा। भगतसिंह ने आगे बढ़कर चार–छह गोलियाँ और दागकर उसे बिल्कुल ठंडा कर दिया। जब सांडर्स के अंगरक्षक ने पीछा किया तो चन्द्रशेखर आज़ाद ने अपनी गोली से उसे भी समाप्त कर दिया। लाहौर नगर में जगह–जगह परचे चिपका दिए गए कि लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला ले लिया गया। समस्त भारत में क्रान्तिकारियों के इस क़दम को सराहा गया। चन्द्रशेखर आज़ाद के ही सफल नेतृत्व में भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल, 1929 को दिल्ली की केन्द्रीय असेंबली में बम विस्फोट किया। यह विस्फोट किसी को भी नुकसान पहुँचाने के उद्देश्य से नहीं किया गया था। विस्फोट अंग्रेज़ सरकार द्वारा बनाए गए काले क़ानूनों के विरोध में किया गया था। इस काण्ड के फलस्वरूप क्रान्तिकारी बहुत जनप्रिय हो गए।

केन्द्रीय असेंबली में बम विस्फोट करने के पश्चात भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने स्वयं को गिरफ्तार करा लिया। वे न्यायालय को अपना प्रचार–मंच बनाना चाहते थे। शहीद पंडित चन्द्रशेखर ‘आज़ाद जीबलिदान की वजह से आज हम लोग आजादी की सांस ले रहे हैं और अंग्रेजों की गुलामी से देश से मुक्ति मिली थी। उनके जीवन की कुछ मुख्य बातें चंद्रशेखर को आजाद कहने की खास वजह भी है। जब वे 15 साल के थे, तब चंद्रशेखर को न्यायाधीश के सामने पेश किया गया तो उन्होंने कहा- मेरा नाम आजाद है, मेरे पिता का नाम स्वतंत्रता और मेरा घर जेल है। न्यायाधीश अपने सामने इतनी बेबाकी से जवाब देने वाले चंद्रशेखर पर भड़क गए और उन्हें 15 कोड़े मारने की सजा सुना दी गई। हर कोड़े के साथ खाल उधड़ती रही और उनके मुंह से आह की जगह ‘वंदेमातरम’ निकलता रहा। यहीं से उनका नाम ‘आजाद’ पड़ गया। वे मरते दम तक आजाद ही रहे। वर्तमान समय मे राजनीति व देश सेवा के लिए शहीद पंडित चन्द्रशेखर ‘आज़ाद जी जैसे महान क्रान्तिकारियो की आवश्यकता है जो देश के युवाओ के लिए देश प्रेम व देश सेवा के लिए प्रेरणा देते रहते है। कार्यक्रम मे रमीज़ राजा, सैय्यद समीर अली, शाहनवाज खान, कपिल शर्मा, लाला राधेलाल, विनायक खन्ना, साजिद , दीपक, नदीम हैदर, जगवती देवी,शाहरुख सैफी, साबिर सैफी, नौमान सैफी, महराज, नासिर चौधरी, राजीव बत्रा, फैसल, शाकिर, वाहिद, मोमिन, नासिर चौधरी, शादाब चौधरी, समीर सलमानी, अंकुश शर्मा, साजिद अहमद, शौकता अली, सकील सैफी, शाहनवाज खान, नितिन अरोड़ा, सब्बीर सैफी, हनीफ मलिक, इनायत अली,सब्बीर शौकीन, जाहिद चौधरी, साजिद, शदाब चौधरी, आकरम कुरैशी, मुस्तफ़ा कुरैशी, सोनू, आदि लोग मौजूद रहे ।

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