बीएसएफ में देश की रक्षा करने के लिए भर्ती हुआ था, ना कि अफसरों के घर घरेलू काम करने के लिए-सैनिक
भारतीय सेना में 'सेवादारी' पर उठते सवाल
(के. पी. मलिक) नई दिल्ली: पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर लगातार एक वीडियो वाइरल हो रहा है जिसमें बताया गया है कि किस प्रकार आज भी अंग्रेजों के जमाने की ही तरह सेवादारी और जवान से जबर्दस्ती घरेलू कार्य करने के लिए विवश किया जा रहा है। जबकि सेना के अधिकारियों का कहना है कि सेवादारी प्रथा संचलात्मक और प्रशासनिक जरूरत के अनुरूप ही है। और बदलाव की सम्भावना नही है। सोचने वाली बात यह है कि वायुसेना और नोसेना में यह प्रथा पहले ही समाप्त हो चुकी है।श्री विपिन रावत के सेना प्रमुख बनने के बाद उन्होंने कहा था कि सेवादारी प्रथा को सीमित करने के लिए उचित निर्णय लिया जायेगा। लेकिन ताज़ा हालात से लगता है कि कोई खास निर्णय नहीं हो पाए हैं।
हमने बात की ‘सीमा सुरक्षा बल’ के कॉन्स्टेबलसे जिनको बल में नौकरी करते हुए तीस वर्ष से वर्ष से अधिक हो चुके हैं। इनका कहना है कि मैं बीएसएफ में देश की रक्षा करने के लिए भर्ती हुआ था, ना कि अफसरों के घर घरेलू काम करने के लिए।
लेकिन नौकरी करने के लिए बॉर्डर पर डयूटी न करके केवल अधिकरिओ के घर नौकर की तरह काम किया है। उन्होंने कहा देश का काम न करके, चंडीगढ़ में एक डीआईजी साहब के घर काम करते है ये पिछले कई वर्षों से इन अधिकारी के घर ही बंधुवा मजदूर की तरह कार्यरत है। इनके अनुसार ये लगभग तीस साल पहले कॉन्स्टेबल भर्ती हुए थे, और आज भी कॉन्स्टेबल ही है क्योंकि इन्हें कोई प्रोमोशन नही मिला। अकेले लालू सिंह ही ऐसे नही है ऐसे हज़ारो जवान है जो पिछले कई वर्षो से अधिकारियों के घर बंधुवा मजदूर की तरह कार्यरत है और तो जो अधिकारी रिटायर हो चुके है उन्होंने पिछले वर्ष तक जवानो का बहुत दुरुपयोग किया है।
अर्धसैनिक बल बीएसएफ से सेवानिवृत्त हो चुके तेजवीर सिंह अलुना बताते हैं एक अधिकारी ऐसे भी थे जिनके केवल फ्लैट की रखवाली के लिए, एक 50हज़ार का वेतन पाने वाला जवान रखा हुआ था क्योंकि वह अधिकारी पिछले चार साल से विदेश में थे और अपने रिटायर होने के 14साल बाद तक जवान को अपने घर पर नौकर की तरह रखे हुए थे। वो जवान अकेला फ्लेट में रहकर बहुत दारू पीता था जब उसकी हालत बिगड़ी तो मैं खुद उसे नई दिल्ली के द्वारका क्षेत्र से भूतपूर्व आईजी साहब के घर से एम्बुलैंस में लेकर महरौली टीबी अस्पताल में भर्ती करवाने ले गया था। वह जवान लगभग एक साल से ज्यादा अस्पताल में रहा और अब भी वह एक बड़े अधिकारी के घर पर उनके घरेलू काम कर रहा है।
देश की सेवा और रक्षा के लिए सेना और अर्धसैनिक बलों में भर्ती हुआ, हर जवान महीने में लगभग 40हज़ार वेतन लेता है उसे कैसे इन अधिकारियो की पत्नियों ने उसे वेटर बना रखा है आप जानकर हैरान होगे कि पैरामिलिट्री फोर्स सहित आर्मी और अन्य बलो के कई लाख जवान अधिकारियों के बंगलो में बर्तन धोने,जूते पोलिस करने,कुत्ते घुमाने,अधिकारियों के बच्चों को खिलाने में लगे हुए है। जिसके कारण सीमाओ पर नफरी की कमी होती है, जो सीमा पर होते है उन्हें ज्यादा ड्यूटी करनी पड़ती है, अधिक समय तक पहरा देने से जवान बीमार होता, उसकी नींद पूरी नही होती,मानसिक तनाव होता है,समय पर छुट्टी नही मिलती, ऊपर से अधिकारियो द्वारा शोषण होता है, सुनवाई नही होने के कारण कई जवान आत्महत्या तक कर रहे हैं।
इसका दूसरा पहलू भी सामने आता है कि सीमा पर डयूटी करने वाला तो घर मे बर्तन धोने में लगा है उसको भी आराम मिल रहा है तो वो सीमा पर जाना ही नही चाहता क्योंकि सीमा पर कठिन परिश्रम करना पड़ता है,परन्तु अधिकारी के घर पर काम करते हुए वो आरामतलबी का आदी हो जाता है, तो वो पूरी उम्र यही ड्यूटी करता है। कुछ जवान भी है जो लगभग 30सालों से एक ही अधिकारी के घर बंधुवा मजदूर की तरह काम कर रहे है, उन्हें वर्दी पहननी भी नही आती, और तो और ये अधिकारी जवाँनो को अपने रिस्तेदारो के घर तक काम करने के लिए भेज देते है।
अधिकारी की मेडम अपने रिस्तेदारो से कहती है आप कोई काम हो खुद मत करना मैं दो सिपाही भेज दूंगी। इन जवानो के मेस का कुक तक इनके घरों में खाना बनानें को रहता है। 90फीसदी अधिकारियों की मैडम सरकारी टेलर को लगातार अपने घर रखती है वो जवानो की वर्दी ना सील कर, मेडम व उनके रिश्तेदारो के कपड़े सीने में ही लगा रहता है।
भारत सरकार के अद्धसैनिक बल में25 साल सेवा दे चुके श्री तेजवीर अलुना बताते हैं कि अगर आपको फिर भी विश्वास नही हो, तो आप किसी फिल्ड या यूनिट में चुपचाप जाकर खुद देख सकते है। अंग्रेजों के काले कानून आज भी चलते है। मैं तो सरकार से ये निवेदन करूँगा अगर आप अच्छा काम कर रहे हो तो इस तुच्छ कार्य से भी जवानो को मुक्ति मिलनी चाहिए।
(लेखक भास्कर के राजनैतिक सम्पादक हैं)