काँटो भरा होगा तेल से गैस तक पहुँचने का सफ़र , गैल के CMD पद पर IOCL के निदेशक वित्त की ताजपोशी की सिफ़ारिश पहला कदम
कुछ दिन क़ब्ल मरकज़ी वज़ीर ने अपने इज़हारे ख़यालात से रू ब रू कराते हुए ऐलानिया फरमाया था कि हम भारत में वैकल्पिक ईंधन के रूप में हाइड्रोजन गैस का विकल्प चुनने जा रहे हैं बहुत मुमकिन है कि साल 2030 तक हम हाइड्रोजन गैस के लक्ष्य को हासिल कर लें, अगर हम ध्यान से इस बयान की बारीकी को समझना चाहें तो हम कह सकते हैं कि मर्कज़ी वज़ीर का इशारा आने वाले दिनों में तेल की जगह गैस और हाइड्रोजन गैस की तरफ़ है, क्यूँकि हालिया दिनों में मर्कज़ी वजीर को हाइड्रोजन से चलने वाली गाड़ी में सफ़र करते हुए देखा गया था।
हाइड्रोजन गैस का नाम आते ही ज़हन में IOCL की एक शक्सियत (डॉक्टर मल्होत्रा पूर्व निदेशक R & D) के ख्यालात ताज़ा हो जाते हैं, एक्सपर्ट्स फ़रमाते हैं कि किस तरह एक विदेश की यात्रा करने के बाद उन्होंने हमे इस तकनीक से रू ब रू कराना चाहा था पर हमने सोचा था कहाँ मल्होत्रा जी हिंदुस्तान जैसे मुल्क में हाइड्रोजन गैस का राग छेड़ रहे हैं यहाँ तो तेल से सब कुछ होने वाला है गैस और हाइड्रोजन गैस तो विदेशों की बाते हैं पर कहते हैं ना R&D पोस्ट के साथ बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो इंसाफ़ कर पाते हैं , उस वक़्त अगर (निदेशक R & D)इस बात पर अमल हो गया होता तो आज IOCL शायद हाइड्रोजन गैस में अव्वल नम्बर पर होता ।
PESB की गैल के चेयरमैन के ओहदे पर इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड के निदेशक वित्त की नियुक्ति की सिफ़ारिश सो मील के काँटो भरे सफ़र की पहले कदम की शुरुआत बताई जा रही है ठीक भी है आख़िर किसी ना किसी को तो चेयरमैन का ओहदा सँभालना ही था ? बोर्ड के ज़रिये अपॉइंटमेंट कैबिनेट कमेटी (ACC) की गई इस सिफ़ारिस पर एक्सपर्ट्स की राय कुछ अलग अलग नज़र आती है, कुछ फ़रमाते हैं कि सरकार अब पूरी तरह से तेल ईंधन के विकल्प के रूप में गैस और हाइड्रोजन गैस की तरफ़ बढ़ रही है जहाँ तक PESB की सिफ़ारिश का सवाल है तो पब्लिक एंटरप्राइज़ सिलेक्शन बोर्ड (PESB) क़ाबिल अफ़सरों का गुलदस्ता है जैसा कि आपको पता है कि गुलदस्ते में वही फूल आते हैं जो बेहद चुनिंदा हों, इसलिये गुलदस्ते से निकली हुई महक पर सवालिया निशान लगाना ग़ैर मुमकिन होगा पर हाँ जिस तरह की ख़ुश्बू पिछले कुछ आय्यामों से इस गुलदस्ते से आ रही हैं वो क़तई भी PSUS के मुस्तक़ाबिल के लिये मुफ़ीद नहीं होगी,ऐसा लग रहा है कि अब सिर्फ़ क़ाबलियत के दर्जे पर ही अफ़सर चुने जाने की सिफ़ारिश की जाये ये जरुरी तो नहीं है, गुलदस्ते से आने वाले पिछले कई फ़ैसलों से अब ऐसा महसूस होने लगा है कि “जी हजूरी” शायद अफ़सर बनने का पैमाना बन गई है ?हालँकि पहले भी थी पर पहले जी हज़ूरी का रेशो नागिस था पर आजकल इसमे इजाफ़ा हुआ है, बहुत मुमकिन है कि इसी वजह से गैल के निदेशक वित्त पर नजरें अव्वल ना करके आईओसीएल के निदेशक वित्त पर नज़रे सानी कर दी गईं वैसे बेहतर होता अगर गैल से ही किसी नाम पर मुहर लगती फिर चाहें वित्त के मेम्बर की दरकार थी, पर बोर्ड ने कुछ अच्छा ही सोचा होगा क्यूँकि चुनते वक़्त बहुत सी चीजों का ज़हन में रखना जरुरी होता है। पर एक सवाल है जिसका जवाब अगर आज हम नहीं ढूँढ पाये तो शायद बहुत देर हो जाये।
सवाल ये है कि जिस तरह से आर्मी में किसी मेडिकल,रोकड़ा अधिकारी , वकील की ख़िदमत देने वाले हमारे आर्मी अफ़सरानो को सेना का जनरल नहीं बनाया जा सकता तो फिर PSUS पर ये बात लागू क्यों नहीं होती? आख़िर कहीं ना कहीं PSUS भी मुल्क की अर्थव्यव्स्था की एक आर्मी ही है, और ख़ास कर तेल और गैस सेक्टर की PSU जो मुल्क की इकोनॉमी में बहुत अहम किरदार अदा करती है।
जिस तरह सेना कई मोर्चों पर अलग अलग अपनी ज़िम्मेदारी निभाती है ठीक उसी तरह हमारे PSUS भी अलग अलग मोर्चो पर ज़िम्मेदारी निभाते हैं, मसलन मंत्रालय को ब्रीफ़ करना, तकनीक से अपडेट रहना R&D करना, मैन पॉवर को देखना, मार्केटिंग को देखना इत्यादि इत्यादि इत्यादि , तो सवाल यही पैदा होता है कि PSUS का जनरल यानी CMD या कमांडर्स यानी निदेशक के को चुनते वक़्त वो सब मापदण्ड क्यों नहीं अपनाये जाते तो इन ओहदो के लिये बहुत दरकार हैं और ख़ास हैं ? में इस बात से सहमत हो सकता हूँ कि शायद मन में ये डर रहता हो की कहीं ऐसा ना हो हम सभी PSUS में सुवीर राह पैदा कर दें जिससे मुल्क की तरक़्क़ी तो हो जायेगी पर ———–का क्या होगा उनकी जी हज़ूरी के लिये किसको लायेंगे ?