पिछले कुछ आय्यामों से ऐसी ख़बरें नसरियात की जा रहीं थी कि यूक्रेन की जंग के मद्दे नज़र सरकारी तेल और गैस की कम्पनियाँ मुसलसल घाटा बर्दाश्त कर रही हैं , जबकि इसके मुख्तलिफ़ प्राइवेट कंपनी मुनाफ़ा लूट रही हैं ,तेल और गैस के माहिरींन का ऐसा नज़रिया है कि सरकारी कंपनी के घाटे की वजह महँगे दाम पर कच्चे तेल और गैस आयात करना है। जबकि इसके बरअक्स प्राइवेट कम्पनियाँ बड़ी चालाकी से कच्चा तेल रियायती दरों पर इंपोर्ट कर रही हैं और उनसे बनने वाले उत्पादों और तेल की बिक्री बाहर विदेश में निर्यात के ज़रिये कर रही हैं ?
पर सवाल ये है कि क्या प्राइवेट तेल और गैस की कंपनियों को ऐसा करने का कोई हक़ है ? “क्या सरकार से इस बाबत लाइसेंस लेते वक़्त प्राइवेट कम्पनियों ने ऐसा कोई करार किया था कि हम कच्चे तेल को रियायती दर पर इंपोर्ट करेंगे पर अपने मुल्क में उससे बनने वाले उत्पाद ना बेच कर बाहर भेजेंगे और मुनाफ़े से अपनी जेब भरेंगे ? ” और अगर नही है तो सरकार के बाबुओं की नींद अब तक आख़िर टूटी क्यों नहीं है ? क्या पर्दे के पीछे गिव एंड टेक का कोई एपिसोड चल रहा है ? इसकी जाँच सरकार और सरकार की एजेंसियों को करना चाहिएँ ।ये बात अलग है की बहुत हू हल्ला होने के बाद सरकार ने USO लागू कर दिया है।
2019 से पहले कम्पनियों के ज़रिये ऐसा कहा जा रहा था की सरकार की नीतियाँ ऐसी हैं जिसकी वजह से पेट्रोल पंप और गैस के आउटलेट लगाने में ख़ासी दिक्कते पेश आती हैं और डिस्ट्रीब्यूशन की चैन बन नहीं पा रही है हमे मौक़ा ही नहीं दिया जा रहा है , सरकार ने इस समस्या का समाधान करने के लिये 2019 के बाद पेट्रोल पम्प और गैस के आउटलेट खोलने की प्रिकिर्या में लचीला रुख़ अपनाते हुए थोड़ी तरमीमियत की जिसके नतीजे में रिटेल आउटलेट की संख्या में तेज़ी से इजाफ़ा होने लगा ।
आज के दौर में पूरे देश में रिटेल आउटलेट की सबसे बड़ी एसोसिएशन (CONSORTIUM OF ASSOCIATIONS OF PETROLEUM) है जिसका कॉर्डिनेशन BPCL करती है , मई महीने में एसोसिएशन को ऐसे संकेत दिये गये थे कि पूरे देश में रिटेल आउटलेट पर बिक्री में कटोती की जाये एसोसिएशन ने इस कटौती से भविष्य में होने वाले नुक़सान का ज़िक्र करते हुए कहा कि इससे सप्लाई पर असर पड़ सकता है, और वही हुआ जैसे ही रिटेल आउटलेट पर बिक्री में कमी आई तो पूरे देश में कई प्रदेशों से रिटेल आउटलेट ड्राई होने की खबरों ने हाहाकार मचा दिया, जानकार ऐसा मानते हैं कि क्यूँकि सरकार का इंपोर्ट बिल बड़ राहा था शायद इसी वजह से सरकार ने अपने इंपोर्ट बिल कम करने के लिए रिटेल आउटलेट पर बिक्री में कटौती के लिये कहा हो।
चाहें पिछली सरकारों का आयल बोंड हों या फिर ऑयल और गैस कम्पनियों की अण्डर रिकवरी ? भुगतना तो आम आदमी को ही पड़ता है, एक ऐसा समय भी था जब प्राइवेट कम्पनियों के ज़रिये ये हू हल्ला मचाया जा रहा था कि हमे तो आयल और गैस सेक्टर में मौक़ा ही नहीं मिलता पर आज जब उनको पूरी ताह से मौक़ा दिया जा रहा है तो प्रॉफिट में होने के वावजूद सरकार से रियायत के लिये दुहाई लगाती हैं, देश में अपनी बिक्री पर रोक लगा कर विदेश में निर्यात कर मुनाफ़ा लूट रही हैं रियायत भारत सरकार से और मुनाफ़ा अपनी जैबों में ये कहाँ का इंसाफ़ या कारोबार का नियम है ? पाठकों को ये जानकर हैरानी होगी कि प्रधानमन्त्री की उज्जवला योजना में भी इन प्राइवेट कम्पनियों ने कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाई ? तेल और गैस का ये खेल कई दशकों से चल रहा है पर अब तो सरकारी सलाहकार बाबुओं को देश के हित में सोचना चाहियें।“जागो सरकारी सलाहकार बाबू जागो “