लोक जनशक्ति पार्टी का अलग चुनाव लड़ने का फैसला नुकसानदायक साबित हुआ, नोटा से कम वोट पाकर भी कई पार्टियों ने की जीत दर्ज.
बिहार चुनाव नतीजों पर विश्लेषण:
शातिक्वेल आरुमुगम :चिराग पासवान द्वारा अलग चुनाव लड़ने का फैसला लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के लिए हुआ नुकसान दायक साथ ही भारी मात्र में जेडीयू और कुछ सीटों पर भाजपा को भी हुआ नुकसान. कई राजनीतिक पार्टियों ने नोटा से भी कम वोट पाकर बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी अच्छी खासी जीत दर्ज करने में सफल रहीं लेकिन लोक जनशक्ति पार्टी अच्छी खासा वोट लेकर भी सिर्फ एक ही विधानसभा सीट पर जीत दर्ज करने में सफल रही. नोटा में इस बार 1.68 प्रतिशत वोट पड़े जो की AIMIM, CPI, CPI(M) जैसी पार्टियों को मिले वोट प्रतिशत से ज्यादा है. लोक जनशक्ति पार्टी 5.64 प्रतिशत वोट शेयर पाकर भी एक ही सीट पर जीत दर्ज कर पाई जबकि ओवैसी की पार्टी AIMIM ने 1.24 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 5 सीटों पर जीत दर्ज की.
CPI ने मात्र 0.83 प्रतिशत वोट हासिल कर 2 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की.
CPI(M) ने 0.65 वोट प्रतिशत के साथ 2 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की.
हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (HAM) और विकासशील इन्सान पार्टी (VIP) ने भी 4-4 सीटों पर अपनी जीत दर्ज की है.
5.64 प्रतिशत वोट शेयर सीट में तब्दील नहीं होने से LJP का तो नुकसान हुआ ही साथ ही दलितों का वोट बंटने से एनडीए को भी नुकसान हुआ है. बिहार में कई विधानसभा सीटों में LJP को 5 से 30 प्रतिशत वोट मिलें हैं. लगभग 31 विधानसभा सीट ऐसी हैं जहां पर LJP को मिले वोट प्रतिशत से कम के अंतर से JDU को हार का सामना करना पड़ा. अगर LJP साथ होती तो इन सीटों में से कई सीटों पर JDU की विजय निश्चित थी.
भागलपुर विधानसभा सीट से बीजेपी के रोहित पांडेय को केवल 1,113 वोटों से कांग्रेस के अजित शर्मा से हार का सामना करना पड़ा जबकि LJP को यहां पर 20,000 वोट मिले हैं.
लोजपा अगर एनडीए के साथ ही चुनाव लड़ती तो लोजपा का कम से कम 10 से 12 सीट जीतना तय था और एनडीए भी और मजबूत स्थिति में होती।
दूसरों का नुकसान करने का विचार वाली राजनीति से अपना भी नुकसान होता है किसी भी दल को यह नहीं भूलना चाहिए।