शिमला : देश की जल विद्युत उत्पादन में अग्रणी कंपनी एनएचपीसी लिमिटेड ने कुल्लू जिले में विगत दो दशकों से अपने कुल 1320 मेगावाट की पार्बती-II व पार्बती-III जल- विद्युत परियोजनाओं के निर्माण से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से इस क्षेत्र के विकास में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया है । जून 2014 में कमीश्न्ड 520 मेगावाट की पार्बती-III पावर स्टेशन द्वारा लगातार जल-विद्युत का उत्पादन हो रहा है और 800 मेगावाट की पार्बती-II जल विद्युत परियोजना का निर्माण प्रगति पर है ।
निगम के वर्तमान अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक श्री ए.के. सिंह जिन्होंने इस क्षेत्र में परियोजना प्रमुख के तौर पर लगभग 5 वर्ष 2012 से लेकर 2017 तक कार्य किया है, का इस क्षेत्र की हर पंचायत के स्थानीय जन से विशेष लगाव है । उनका हमेशा पार्बती-II और पार्बती-III के माध्यम से इस क्षेत्र के विकास के लिए विशेष प्रयास रहा है । उनका कहना है की एनएचपीसी का प्रारंभ ही हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले से वर्ष 1975 में मात्र 180 मेगावाट की बैरा-स्यूल परियोजना से हुआ और वर्तमान में हिमाचल में कुल 1771 मेगावाट बिजली के स्थापित क्षमता के 5 पावर स्टेशनों (बैरा-स्यूल, चमेरा-I, चमेरा-II, चमेरा-III, पार्बती-III), 800 मेगावाट की पार्बती-II निर्माणाधीन परियोजना और हाल ही में एनएचपीसी को हिमाचल सरकार द्वारा दी गई 449 मेगावाट की डुग्गर जल विद्युत परियोजना के साथ कुल 3020 मेगावाट जल-विद्युत क्षमता के साथ एनएचपीसी हिमाचल और राष्ट्र निर्माण में अपनी अहम भूमिका निभा रही है । यह भी उल्लेखनीय है कि हिमाचल के लोगों का व्यवहार मिलनसार होने के साथ ही साथ बहुत ही सहयोगात्मक रहा है और इस विकास के पथ एनएचपीसी को स्थानीय जन का पूरा सहयोग मिला । आज एनएचपीसी के इस पहचान का श्रेय भी विशेष रूप हिमाचल प्रदेश के लोगों को जाता है ।
इन दोनों ही परियोजनाओं के निर्माण के दौरान इनके विभिन्न अवयवों तक आने-जाने हेतु बहुत से पहुँच मार्ग और पुलों का निर्माण किया गया । अगर बंजार-सैन्ज क्षेत्र की ही बात की जाये तो, इस क्षेत्र के प्रवेश स्थल पर ही एनएचपीसी द्वारा एक स्वागत गेट का निर्माण करवाया गया है जिसमें स्थानीय स्थलों की दूरी की दी गयी जानकारी सभी के लिए बहुत ही लाभप्रद सिद्ध हो रही है । इस क्षेत्र में लारजी से सैन्ज/सियूण्ड तक के लगभग 12 Km के रास्ते में कुल 3 पक्के पुलों लारजी पुल (102 मीटर स्पैन), लागत 2.5 करोड़, लारजी-बिहाली बाईबास पुल (53 मीटर स्पैन), लागत 1.5 करोड़ और सियूण्ड पुल (60 मीटर स्पैन) लागत 1.63 करोड़, का निर्माण एनएचपीसी द्वारा करवाया गया। वर्तमान में इन पूलों का लाभ स्थानीय जन के साथ ही साथ बाहर से आने वाले पयर्टको को भी मिल रहा है । इन पुलों के कारण मुख्य रूप से 15 पंचायतों के लगभग 25000 लोगो को प्रत्यक्ष रूप से लाभ मिल रहा है । वे गांव, पंचायत, क्षेत्र जहां से आने-जाने में स्थानीय जन को और विशेष तौर पर विधार्थियों, बुजुर्गो, गर्भवती महिलाओं,मरीजों आदि को आकस्मिक आवश्यकता में अस्पताल ले जाने में बहुत ही मुश्किलों का सामना करना पड़ता था आज इन पुलों की वजह से ये सारे कार्य सुमग हो गए है । हर गांव के लोग एक दूसरे के यहां बड़ी ही सरलता से आते–जाते हैं, देवी-देवता से संबन्धित यात्राओं को बड़े ही सहजता से करते हैं और इससे आपस में नए रिश्ते भी बनाने में बहुत ही सरलता हो रही है । यह सोलह आने सच है कि सड़कों और पुलों को “हिमाचल की जीवन रेखा” कहा जाता है । एनएचपीसी भी हिमाचल की इन जीवन रेखाओं को बनाने में अपनी सक्रिय भूमिका निभा रही है।