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गोरो ने सन् १९४२ मे भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेने की वजह से हमारे घर को जलाकर राख कर दिया था -पूर्व महानिदेशक (CPWD)

आँखों देखी आज़ादी की एक मार्मिक गाथा -मुझे गर्व है-पूर्व महानिदेशक प्रभाकर सिंह

बहुत प्रचलित नाम है बाबा , जब हम किसी को आदर और सम्मान दे कर उसका नाम न लेना चाहें और वो शक्स उम्रदराज़ हो तो उसे बाबा कह कर संबोधित करने की भारतीय संस्कृति रही  है, हालाँकि आज के इस पनपते युग में बाबा के अपने अपने अर्थ निकाले जा सकते हैं। हम अपने दादा जी को बाबा कहा करते थे। हमारे  बाबा का नाम श्री गया प्रसाद सिंह था जो कि एक महान संत पुरुष थे। घर गृहस्थी की पूरी ज़िम्मेदारी निभाने में बाबा कोई कसर नहीं छोड़ते थे। उनके तीन छोटे भाई थे, दुर्गा प्रसाद, काशीनाथ और केदारनाथ । दुर्गा जी का  स्वभाव बाबा जी के स्वभाव से मेल खाता था ।

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बाबा देवडीह गांव जो बलिया में था वहीं खेती , किसानी का काम संभालते थे। दुर्गा जी छोटो केशरी बाड़ी गांव, जो कूचबिहार, पश्चिम बंगाल में था। वहां की खेतीबाड़ी संभालते थे। बंगाल में हमारी खेती बाड़ी सात गांवों में फैली हुई थी। मेरे पिता श्री श्रीकान्त जी की शादी बड़े कम उम्र मे छ, जून 1926 (१९२६) को हुई थी, जब मेरी मां सुमित्रा देवी जी की उम्र केवल बारह साल की थी। उनकी शादी में मामा के परिवार की तरफ से अन्य उपहारों में एक मजबूत क़ीमती पलंग भी था जो आज भी उसी तरह सही सलामत गांव देवडीह के घर पर रखा हुआ है। माँ बताती थी कि गोरो ने सन् १९४२ मे हमारे घर पर भारत छोड़ो आन्दोलन मे आक्रमण किया और इसे जलाकर राख कर दिया।

उसके पहले हम लोगों ने अपने मूल्यवान सामान, औरतों के गहने आदि जल्दी से एकत्रित करके घर के पास वाले पोखरे के अंदर फेंक दिया था। तभी इस पलंग को भी उसी पानी में फेंक दिया गया. था। यह सब सामान उस पोखरे में महीनों पड़ा रहा। हम लोग एक गांव से दूसरे गांव वेश बदलकर अंग्रेजों को चकमा देते रहे। पूरा परिवार छितर बितर गया था। इसी बीच मेरे बाबा केदार नाथ जी ने बलिया और बनारस को जोड़ने वाली सड़क पर नदी के ऊपर बने पुल को तोड़ दिया जिससे बलिया का बनारस से संपर्क पूरी तरह टूट गया और अंग्रेजी हुकूमत का बनारस से बलिया के ऊपर कंट्रोल पूरी तरह खतम हो गया। अंग्रेजी हुकूमत बागी बलिया के आन्दोलनकारियों के इस बज्रप्रहार से पूरी तरह टूट गयी।  १८ अगस्त १९४२ को बागी बलिया के एक वीर सुपूतों ने बलिया को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कर दिया। पूरे भारत में बलिया सबसे पहले आजाद हुआ जिसमे मेरे बाबा ने स्वयं अपने को और अपने पूरे परिवार को झोक दिया था। इस दौरान मेरे बाबा काशीनाथ जी को अंग्रेजों ने पकड़ लिया और उन्हें जेल में डाल दिया। जेल में उन्हें अनेक यातनाए झेलनी ‘पड़ी पर वे हिम्मत नहीं हारे। अंग्रेज जेलर उन्हें खाने में मिट्टी मिला कर देता था जिससे सभी आन्दोलनकारी देशभक्त जेल में बीमार पड़ गये।  जब मेरे बाबा ने इस बात पर जेलर का विरोध किया तो जेलर ने कहा कि-यह आपकी मातृभूमि है। इससे आपको कोई परेशानी नही होनी चाहिए। इस पर मेरे बाबा ने कहा कि “हम अपनी मातृभूमि की रक्षा करने आएं है न कि उसे खाने।” जेलर इस जबाब से हतप्रभ हो गया पर वह अपनी शरारतों से  कभी बाज नहीं आया। 

काशीनाथ जी बाबा बताते थे कि जेल में सभी देशभक्त देशभक्ति के गीत लिखते थे  और गाते थे जिसको  जेलर रोक नही पाता था। उन्होंने यह भी बताया कि बलिया के वीर बांकुडो ने बलिया को १८५७,१९४२ और १९४७  में पूरे भारत में सबसे पहले बलिया को अंग्रेजी के  चंगुल से छुड़ाया और आजाद कराया। मुझे गर्व हैं अपने बाबा पर और अपने परिवार पर जिसने देश की आजादी के लिये अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया।

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