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खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को सही कारगर नीतियों की संजीवनी बूटी कब !

(दीपक कुमार त्यागी स्तंभकार) भारत की अर्थव्‍यवस्‍था की रफ्तार बढ़ाने के नरेंद्र मोदी सरकार के प्रयासों को शुक्रवार 29 नवंबर को उस समय तगड़ा झटका लगा जब केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, लम्बे समय से मंदी की मार झेलने से बेहाल भारत की अर्थव्यवस्था में ताजा जारी किये गये आकड़ों के अनुसार और गिरावट देखने को मिली है। इन आकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में भारत की विकास दर में भारी गिरावट आयी है। ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत का जीडीपी (GDP) ग्रोथ का आंकड़ा 4.5 फीसदी पहुंचा गया है। जो पिछले 6 वर्षों में किसी तिमाही की सबसे बड़ी गिरावट है। जीडीपी के आकड़ों में भारी गिरावट नजर आने के बाद अर्थव्यवस्था को लेकर देश में राजनीति शुरू हो गई है, केंद्र सरकार के कर्ताधर्ता एकबार फिर विपक्षी दलों के निशाने पर आ गये है।

वैसे भारतीय अर्थव्यवस्था की इस स्थिति के लिए देश के कर्ताधर्ताओं में कोई माने या ना माने, लेकिन यह कटु सत्य है कि कहीं ना कहीं यह मानव जनित आपदा है। सरकार के कुछ गलत आर्थिक निर्णयों के चलते आज भारत की अर्थव्यवस्था बेहद मंदी के नाजुक दौर से गुजर रही है। देश में स्थिति यह हो गयी है कि भारतीय बाजार पर उसका दुष्प्रभाव अब आकड़ों की बाजीगरी के बाद भी छिपाया नहीं जा सकता है। लेकिन फिर भी ना जाने क्यों देश के नीतिनिर्माता स्थिति की गम्भीरता को अब भी समझने के लिए तैयार नहीं हैं, वो इस हालात को या तो जानबूझकर समझने के लिए तैयार नहीं है या यह भी हो सकता है कि उनकी टीम में शामिल लोग अर्थव्यवस्था को कमजोर करने वाले ठोस कारकों को पकड़ नहीं पा रहे हो। खैर अर्थव्यवस्था कितनी भी खस्ताहाल बेहाल हो, लोगों को बेशक रोजीरोटी रोजगार ना मिल रहा हो उससे हमारे देश के चंद ताकतवर राजनेताओं पर कुछ असर नहीं पढ़ता है वो अब भी लोगों को बरगला के हिन्दू-मुसलमान , मंदिर-मस्जिद में उलझा कर भीड़तंत्र का बेहुदा माहौल बनाने में व्यस्त है। सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि वो भारत जैसे विकासशील देश की तुलना बात-बात में हर मोर्चे पर असफल पाकिस्तान से करके भारतीय जनसमूह से खूब तालियां बटोरते हैं।

वर्तमान में देश की अर्थव्यवस्था के इस हालात के लिए उच्च जीएसटी दरें, कृषि क्षेत्र में संकट, वेतनभोगियों के वेतन में कमी और नकदी की कमी आदि कारक की वजह से देश को भारी मंदी का सामना करना पड़ रहा है। साथ ही अर्थशास्त्रियों के अनुसार उपभोग में भारी मंदी के रुझान, जीडीपी विकास दर में लगातार गिरावट का सबसे प्रमुख कारण है। जिसके चलते भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबूत स्तंभ ऑटोमोबाइल, पूंजीगत वस्तुएं, बैंक, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, एफएमसीजी और रियल एस्टेट आदि सहित देश के सभी प्रमुख सेक्टरों में भारी गिरावट आई है। जोकि अर्थव्यवस्था में मंदी का माहौल पैदा कर रहे हैं।लेकिन फिर भी अपनी हठधर्मिता वाली नीति के चलते अब भी सरकार में बैठे कुछ लोग स्थिति को सामान्य बता रहे हैं। इस स्थिति में कहा जा सकता है कि देश की   अर्थव्यवस्था की सरकार जितनी गुलाबी तस्वीर पेश कर रही है। हकीकत में धरातल पर हालात सामान्य नहीं हैं। इस स्थिति के लिए वजह चाहे जो भी हो लेकिन सरकार को चाहिए की वो तत्काल अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए सही नीतियों की संजीवनी बूटी की ताकतवर डोज प्रदान कर, इस गम्भीर बीमारी का उपचार कर संकटग्रस्त देशवासियों को राहत प्रदान करें। क्योंकि आजकल आर्थिक स्थिति को लेकर जमीन स्तर पर जो स्थिति बनती जा रही है वो देशहित में व आमजनमानस के हित में ठीक नहीं है। अब लोगों से उनकी रोजीरोटी रोजगार छिनने लगा है जिससे आमजन को भारी दिक्कत होने लगी है, देश में लोगों की नौकरी जा रही नये रोजगार पैदा होने के अवसर दिनप्रतिदिन खत्म होते जा रहे हैं। जिसके चलते अब देश के आमजनमानस को लगने लगा है कि सरकार आर्थिक मोर्चे पर पूर्ण रूप से विफल है और स्थिति उनके नियंत्रण से दिनप्रतिदिन बाहर होती जा रही है, जो हालत चिंतनीय हैं।

खस्ताहाल अर्थव्यवस्था की हालत पर भाजपा सरकार के नेता भले ही कहें कि कुछ लोगों को उनकी सरकार की आलोचना करने में मजा आता है। लेकिन हक़ीक़त यह है कि अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्र इन दिनों बहुत संकट में हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक़ निजी निवेश में मंदी की हालत में सुधार के संकेत जल्द दिखाई नहीं दे रहे है। देश को धन उपलब्ध करवाने वाला बैंकिंग क्षेत्र फंसे क़र्ज़ (एनपीए) की समस्या से बेहाल है। कोयला, क्रूड ऑयल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी प्रोडक्ट्स, उर्वरक, सीमेंट, बिजली और इस्पात देश के आठ महत्वपूर्ण कोर सेक्टर हैं। इन सेक्टर का देश के औद्योगिक उत्पादन इंडेक्स में लगभग 40 फीसदी का योगदान है। लेकिन वैश्विक मोर्चे पर बिगड़ती स्थितियों के बीच निजी निवेश और उपभोक्ता मांग में जबरदस्त सुस्ती के चलते भारत की आर्थिक वृद्धि लगातार कम होती जा रही है। जिसका उत्पादन वृद्धि और रोजगार सृजन पर भी दबाव पड़ा है। आईएचएस मार्किट का इंडिया मैन्यूफैक्चरिंग पर्चेजिंग मैनेजर्स सूचकांक (पीएमआई) निचले स्तर पर है। लागत बढ़ने और डिमांड घटने की वजह से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ में कमी आई है। PMI इंडेक्स घट रहा है। सोचने वाली बात यह है कि देश के कई क्षेत्रों में विकास की रफ्तार एकदम थम सी गयी है। मंदी की मार के चलते कमजोर होती अर्थव्यवस्था के ये हालात खुद प्रधानमंत्री मंत्री नरेंद्र मोदी के “फॉइव ट्रिलियन इकॉनमी” के सपने के लिए बेहद घातक है। अगर भारतीय अर्थव्यवस्था इसी तरह के ढ़र्रे पर चलती रही तो यह तय है कि मोदी का “फॉइव ट्रिलियन इकॉनमी” का सपना जल्द पूरा नहीं होने वाला है। जो स्थिति आर्थिक रूप से देश की जनता के लिए व राजनैतिक रूप से भाजपा के लिए सही नहीं है। मंदी के यह हालात तेजी से विकास के पथ पर चलकर विकसित बनने के कतार में शामिल विकासशील भारत के लिए भी बेहद चिंताजनक है। इसलिए सरकार को मंदी की स्थिति से निपटने के लिए तत्काल प्रभावी कदम उठाने होंगे ।

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