(दीपक कुमार त्यागी स्तंभकार)महाराष्ट्र में देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को झकझोर देने वाला सत्ता हासिल करने का दंगल अब चरम पर पहुंच गया है। राज्य में देश के शीर्ष राजनीतिज्ञों के द्वारा पूरे जोशोखरोश के साथ पिछले एक माह से जबदस्त सियासी राजनीति की ऐसी कुटिल चाले चली जा रही हैं, जो कि इस जबरदस्त सियासी घमासान को खत्म होने देने का नाम ही नहीं ले रही हैं। देशवासियों को लगता है कि इस घटनाक्रम का अब जल्द ही पटाक्षेप हो जाये और राज्य को नई स्थाई सरकार मिल जायेगी, लेकिन राजनीति की “साम दाम दंड भेद” वाली चाणक्य नीति के चलते देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री व अजीत पवार के उप मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद भी सरकार की स्थिति स्पष्ट नहीं है। महाराष्ट्र की राजनीति के महासंग्राम में जहां एकतरफ भाजपा सत्ता बरकरार रखने के लिए इस युद्ध को जीतना चाहती है। वहीं शिवसेना, एनसीपी व कांग्रेस के सत्ता हासिल करने की जबरदस्त चाह में, ये दल भी कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार हैं। जिस तरह से सत्ता हासिल करने के लिए रातों रात छिपकर सरकार बनाने वाली “पार्टी विद डिफरेंस” की बात करने वाली भाजपा और अलग-अलग विचारधारा वाले दल शिवसेना, एनसीपी व कांग्रेस आदि सभी दल अपने सिद्धांतों को तिलांजलि देकर राज्य की सत्ता पर काबिज होने की लड़ाई लड़ रहे हैं। वो 21वीं सदी के आधुनिक भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए उचित नहीं है।
महाराष्ट्र के राजनैतिक संकट को लेकर सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुनाने के लिए मंगलवार का दिन सुरक्षित रखा हैं। तब से राज्य में सत्ता हासिल करने की चाहत में जबदस्त सियासी ड्रामा जारी है, उसी क्रम में सोमवार को मुंबई के होटल ग्रैंड हयात में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस आदि दलों के 162 विधायकों की मीडिया के सामने परेड हुई। जिसमें पहली बार तीनों दलों के कद्दावर नेता शरद पवार, उद्धव ठाकरे और पूर्व सीएम अशोक चव्हाण आदि सार्वजनिक रूप से मीडिया के सामने मौजूद रहे। यहां पर सभी विधायकों को एनसीपी नेता जितेंद्र अवहद ने कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी, एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार और शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के नाम पर शपथ दिलाई। तीनों पार्टियों के विधायकों ने कहा कि वे इस शपथ के प्रति निष्ठावान रहेंगे, किसी लोभ-लालच में नहीं पड़ेंगे और गठबंधन के प्रति ईमानदार बनें रहेंगे। इन सभी विधायकों ने शपथ ली कि वे भाजपा का समर्थन नहीं करेंगे और न ही अपनी पार्टी के खिलाफ काम करेंगे और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का आदेश मानेंगे। यह सियासी नजारा आज के भारतीय लोकतंत्र का एक नया चेहरा व नयी परिपाटी है। वैसे राजनीति पर शायर बशीर बद्र जी ने खूब कहा है कि
“सियासत की अपनी अलग इक जबा है, लिखा हो जो इक़रार, इनकार पढ़ना”। यह शेर महाराष्ट्र के मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम पर एकदम सटीक बैठता हैं। वहीं महाराष्ट्र के इस गम्भीर राजनैतिक संकट पर आज मंगलवार “संविधान दिवस” के दिन सुप्रीम कोर्ट की बैंच ने हॉर्स ट्रेडिंग व अन्य गैरकानूनी दावपेंचों को रोकने के उद्देश्य से अंतरिम आदेश देते हुए प्रोटेम स्पीकर के द्वार 27 नवंबर को सांय 5 बजे तक सभी विधायकों को शपथ दिलावाकर कल ही लाईव प्रसारण के साथ बिना किसी प्रकार के गुप्त मतदान के फ्लोर टेस्ट कराने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश शिवसेना, एनसीपी व कांग्रेस के लिए बहुत बड़ी राजनैतिक संजीवनी है। यहां यह भी गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति राज्यपाल के ऊपर छोड़ दी है। इस आदेश के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में घमासान तेज हो गया है और यह आने वाला समय ही बतायेगा की इस महासंग्राम में किसकी विजय होगी और किसकी पराजय होगी। मित्रों वैसे तो हमारे प्यारे देश भारत को आजाद हुए 72 वर्ष हो चुके हैं, देश में दृढ़ संकल्प, मजबूत इच्छाशक्ति व सशक्त इरादों वाले ईमानदार राजनेताओं के चलते आजादी के बाद दिन-प्रतिदिन लोकतांत्रिक व्यवस्था बेहद मजबूत हुई है, जो देश के लोकतंत्र में परिपक्वता के रूप में लम्बे समय से स्पष्ट नजर आने लगी है। लेकिन साथ ही साथ कुछ राजनेताओं के सत्ता हासिल करने के लालच के चलते पिछले कुछ वर्षों से देश में राजनीति का स्तर भी तेजी से दिन-प्रतिदिन गिरता जा रहा है। अब तो हालात यह हो गये हैं कि कभी समाजसेवा व देशसेवा के जुनून के साथ आमजनमानस की भलाई करने का सबसे सशक्त माध्यम माने जाने वाली राजनीति के स्तर में अब बहुत तेजी से गिरावट आ रही है। पिछले कुछ वर्षों में देश के चंद ताकतवर राजनेताओं के राजनीतिक आचरण के चलते राजनीति के क्षेत्र में सिद्धांतों के प्रति राजनेताओं की प्रतिबद्धता अब बहुत दूर की कौड़ी की बात हो गई है। हालांकि देश में अब राजनीति का वो दौर चल रहा है जब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के नाम पर कसम खाने वाले नेताओं की भरमार है लेकिन उनके दिखाये मार्ग पर चलने वालों कि संख्या बहुत कम है। आज महापुरुष बनने की चाह में हमारे राजनेताओं में सिद्धांतों पर लम्बे चोड़े भाषण देने का फैशन बन गया है, लेकिन जब बात सिद्धांतों पर अमल करने की आती है तो वो राजनेता ही उनको सबसे पहले तिलांजलि देकर छल-कपट, तिकड़मबाजी, धोखेबाजी, झूठ-प्रपंच, अवसरवादिता, धनबल, बाहूबल का प्रयोग करके अपने स्वार्थ सिद्धि को सर्वोपरि मानते हैं और वो उसको पूरा करने के लिए एक ही पल में सिद्धांतों, देश व समाज हित को त्याग देते हैं। अफसोस की बात यह हो गई है कि छल-कपट, कुटिल घटिया स्तर की राजनीति आजकल की राजनीति का एक महत्वपूर्ण अंग बना गयी हैं। आज हकीकत यह है कि जिस राजनीति को देश की सम्मानित जनता के प्रति पूर्ण निष्ठाभाव से समर्पित होना चाहिए था, आज वो सत्ता के लालच में अंधी होकर सिद्धांतों को तिलांजलि देकर स्वयं स्वार्थ के लिए समर्पित हो गयी हैं। आज वो चंद तिकड़मबाज नेताओं की बंधक बन गयी है।
आज की कुटिल राजनीति पर शायर “राज इलाहबादी” का एक शेर एकदम सटीक बैठता है “कैसे कैसे हैं रहबर हमारे, कभी इस किनारे, कभी उस किनारे”। क्योंकि आज के राजनेता चुनाव जीतने के बाद एक पल में अपने सिद्धांतों को छोड़कर स्वार्थ के लिए जनभावनाओं के विपरीत जाकर अलग विचारधाराओं से हाथ मिला लेते हैं, केवल सत्ता हासिल करने के लिए। आज हमारे देश के राजनैतिक दल सत्ता की मलाई हासिल करने के लिए अपने सिद्धांतों को एक पल में छोड़कर कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। आज देश की जनता देख रही है कि महाराष्ट्र में सत्ता हथियाने के प्रकरण में कौन भारतीय लोकतंत्र को मजबूत कर रहा है और कौन लोकतंत्र को कमजोर कर रहा है। जिस तरह से चंद राजनेता अंहकार में चूर होकर आज भारतीय राजनीति को जबरन ऐसी करवटें लेने के लिए मजबूर कर रहे हैं, जिससे ईमानदारी युक्त राजनीति का भविष्य और लोकतांत्रिक मूल्य ही खत्म हो जाएं। हालांकि इस तरह की सिद्धांतों को तिलांजलि देकर ओछी राजनीति करने वाले राजनेताओं को आने वाले समय में देश की सम्मानित जनता माफ नहीं करेगी। यही संकल्प आज “संविधान दिवस” पर हम सभी देशवासियों को ईमानदार लोगों के हित में व देशहित में लेना चाहिए