देश का 90 प्रतिशत बिजनेस इस रुलिंग गवर्मेंट के सहयोगियों के द्वारा देश और विदेश में चलता है-कांग्रेस
दिल्ली : श्री गुलाम नबी आजाद ने अपनी प्रेस वार्ता कहा है कि , आज ये प्रेस वार्ता बहुत ही महत्वपूर्ण है और विशेष है, मैं कहूंगा कि पिछले 6 सालों में सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि जिस सब्जेक्ट पर हम बोल रहे हैं, वो सब्जेक्ट सीधे माननीय प्रधानमंत्री के ऑफिस तक चला जाता है। कई बार सदन के बाहर, सदन के अंदर चर्चा हुई है कि ये सरकार, बीजेपी की सरकार इस देश के चंद, लगभग एक दर्जन या मुठ्ठी भर बिजनेसमैनों के साथ मिलकर इस देश की सरकार और इस देश का बिजनेस चला रहे हैं। देश का 90 प्रतिशत बिजनेस इस रुलिंग गवर्मेंट के सहयोगियों के द्वारा देश और विदेश में चलता है और उन बिजनेसमैनों के द्वारा बीजेपी की सरकार यहाँ चलती है। अभी तक जब राजनीतिक दल इस पर चर्चा करते थे, तो राजनीतिक दलों पर ये आरोप लगाया जाता था कि ये पार्टी पॉलिटिक्स के कारण ऐसा बोलते हैं, लेकिन पहली बार आरटीआई के द्वारा ये साबित हो गया है कि जो हमारे आरोप थे, हमारी जो टिप्पणियां थी, वो गलत नहीं थी, वो ठोस आधार पर थी और इस आरटीआई के द्वारा वो तमाम चीजें जहाँ पर हस्ताक्षर ऑफिसर के भी हैं, उन्होंने क्या टिप्पणी की है, कितनी बार उसमें मैंशन (mention) है कि पीएमओ के कहने से जो इलेक्टरल बॉण्ड की स्कीम थी, उन रुल्स को किस तरह से तोड़ा जाए, ये शायद पहली बार होगा कि सरकार रुल बनाए और पीएमओ कहे कि रुल तोड़ो। ये लिखित में है। हम लोग भी सरकार में रहे हैं, हमने ऐसी फाइलें पहली बार देखी कि घर का मुखिया ही कहे कि चोरी करो। ये जो कॉंसपिरेसी (conspiracy) बनी थी कुछ बिजनेस हाउसिस के बीच और जैसा मैंने कहा कुछ बिजनेसमैनों के बीच और सरकार के बीच में कि इलेक्टरल बॉण्ड इशू किए जाएँ, एक कॉंसपिरेसी थी और जिस कॉंसपिरेसी की जो आधारशिला थी, वो तीन चीजों पर आधारित थी। पहला – डोनर जो पैसा देगा, वो अपना नाम छुपा कर रखेगा, उसको डिस्क्लोज करने की जरुरत नहीं है कि कितना फंड उसने दिया या उसका नाम क्या है। जो पॉलिटिक्ल पार्टी उस डोनर से पैसा लेती है, उस पॉलिटिक्ल पार्टी को भी ये जरुरी नहीं है कि उस डोनर का वो नाम बताए, कितना पैसा वो बिजनेसमैन पॉलिटिक्ल पार्टी को दे, इसकी कोई सीमा निर्धारित नहीं की। आप जानते हैं कि एक तरफ से आप ब्लैक मनी दे दो और दूसरी तरफ से वाइट मनी ले लो। ये आधारशिला थी, जिसके आधार पर ये नकली मकान बनाया गया था। अब इस पर किसने आपत्ति की, विपक्ष आपत्ति करे तो समझ आ सकता है कि कहेंगे कि ये विपक्षी दल हैं, इनको तो आपत्ति जतानी है, लेकिन इस पर आपत्ति जता रहा है आरबीआई! रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का क्या कहना है – “इससे मनी लॉंड्रिंग को फायदा होगा, मनी लॉड्रिंग इससे बढ़ेगी, ये स्कीम जो सरकार ने बनाई है, इससे मनी लॉड्रिंग को आप प्रोत्साहित करते हैं और जो मनी लॉड्रिंग को रोकने का प्रावधान है, आत्मा है, वो इसी से मर जाती है कि आप खुद ही रास्ता चुन रहे हैं मनी लॉड्रिंग का, तो मनी लॉड्रिंग कानून बनाने का फायदा क्या है? जो रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के नोट हैं, उसको भी आप अंडरमाइन करते हैं। जब आप नाम भी नहीं बता रहे हैं कि कौन पैसा दे रहा है, वो कोई फ्रॉड व्यक्ति दे रहा है, वो कोई स्मगलर दे रहा है, वो कोई आंतकवादी दे रहा है, जब डोनर का नाम ही नहीं लिया जा रहा है तो कोई भी दे सकता है।तो ये इसको मैं कहूंगा कि ये गैर कानूनी चीज है कि आप नाम भी नहीं बताएंगे कि किसने ये पैसा दिया है। रिजर्व बैंक के बाद, दूसरा बड़ा इंस्टीट्यूशन कौन है, वो है- चुनाव आयोग, जिसकी देख–रेख में देश के चुनाव होते हैं और सीधा कनेक्टेड़ है इन तमाम चीजों से। चुनाव आयोग कहता है कि इससे तमाम डोनेशन देने की जो पारदर्शिता है, वो खत्म हो जाती है। This will end the ‘transparency of the donation’. जो पारदर्शिता है, वही खत्म हो जाती है डोनेशन की। ये कोट-अनकोट चुनाव आयोग कहता है। दूसरा कहता है – It would lead to “increased use of black money for political funding through shell companies”, कि ऐसा करने से जो आपकी ब्लैक मनी का जो फ्लो होगा वो शैल कंपनी के द्वारा पॉलिटिक्ल पार्टी को मिलेगा।एक तरफ माननीय प्रधानमंत्री और फाईनेंस मिनिस्टर पिछले कई सालों से कह रहे हैं कि हमने शैल कंपनियां खत्म कर दी, इस देश में पहले शैल कंपनियां चलती थी। चुनाव आय़ोग कहता था कि आप ये करोगे, तो शैल कंपनियां और खुलेंगी और उनके द्वारा ही ये तमाम पैसा पॉलिटिक्ल पार्टी को मिलेगा। जैसा मैंने कहा कि आरटीआई में बार-बार लिखा है कि ये तमाम चीजें पीएमओ और पीएमओ के इंस्टेंस (insistence) पर हुई हैं।