(के. पी. मलिक) नई दिल्ली: अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) आगामी 4 नवम्बर को मोदी सरकार द्वारा आर.सी.ई.पी. मुक्त व्यापार संधि में भारत को शामिल करने के विरुद्ध सरकार को चेतावनी देने के लिए देशव्यापी विरोध आयोजित करेगी। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति, देश भर के लगभग 250 किसान संगठनों के सबसे बड़े मोर्चे ने मोदी सरकार से आर.सी.ई.पी., क्षेत्रीय समग्र व्यापार संधि, जो कि 16 देशों के बीच एक बहुपक्षीय मुक्त व्यापार संधि है, में भारत को शामिल करने की योजना पर प्रश्न उठाया है। मीडिया को सम्बोधित करते हुए किसान नेता वी एम सिंह तथा अन्य सदस्यों ने यह जानकारी दी कि 4 नवम्बर को जिस दिन आर.सी.ई.पी. समझौते पर हस्ताक्षर होने जा रहा है, किसान देशव्यापी विरोध आयोजित करेंगे। एआईकेएससीसी ने नेतृत्व में किसान जिलास्तर व निचल प्रशासनिक कार्यालयों पर आर.सी.ई.पी. का पुतला दहन करेंगे।
एआईकेएससीसी ने इस बात पर जोर दिया है कि सरकार की किसान विरोधी कारपोरेट पक्षधर नीतियों के कारण भारतीय किसान विश्व बाजार में अपनी फसलें बेच पाने में कम सक्षम हैं। विश्वभर में सरकारें फसलों की लागत में भारी छूट देती हैं और अपने किसानों को खेती की अच्छी सुविधाएं प्रदान करती हैं, जिसकी वजह से उनकी उपज के दाम बाजार में प्रतियोगी बने रहते हैं। भारत में लागत पर इतना भारी कर लगाया जाता है और किसानों को लाभकारी मूल्य नहीं दिया जाता कि किसान घाटे में रहते हैं और कर्ज से लदे रहते हैं। आर.सी.ई.पी. इस संकट को और गम्भीर बना देगा।
एआईकेएससीसी ने कहा कि इतने व्यापक प्रभाव वाले व्यापार समझौते को जो करोड़ों भारतीय किसानों की जीविका को प्रभावित कर देगा, एक पूर्ण गोपनीय समझौता किया जाना, लोकतंत्र का मजाक उड़ाना है। उसने कहा कि इस समझौते का कोई प्रारूप जनावलोकन के लिए मौजूद नहीं है, राज्य सरकारों से भी सुझाव नहीं लिए गये हैं और संसद में भी इसकी चर्चा नहीं की गयी है। नेताओं ने कहा कि वाणिज्य मंत्री का यह कहना कि ‘जब तक समझौता बाहर नहीं आता तक तक सभी को चुप्पी साधे रखनी चाहिए, बेहन निन्दनीय है। उन्होंने कहा कि सरकार विरोध को तब तक रोके रखना चाहती है, जब तक यह समझौता हस्ताक्षर के बाद एक मजबूरी न बन जाए। एआईकेएससीसी ने मांग की है कि इस पर 4 नवम्बर को हस्ताक्षर करने से पहले सरकार को समझौते का प्रारूप सार्वजनिक करना चाहिए, किसान संगठनों, किसानों, राज्य सरकारों व सभी प्रभावित पक्षकारों की राय लेकर ही अंतिम निर्णय लेना चाहिए।
किसानों पर पड़ने वाले आर.सी.ई.पी. के प्रभाव को विस्तार से समझाते हुए नेताओं ने बताया कि डेयरी क्षेत्र पर इसका अभूतपूर्व प्रभाव पड़ेगा, जैसा कि पिछले किसी समझौते से नहीं पड़ा। अब तक नियम यही रहा है कि खेती को मुक्त व्यापार समझौतों से मुक्त रखा जाए, जिस नियम पर अमेरिका और यूरोप के बीच समझौतों में भी पालन किया गया है। इसमें आयात शुल्क शून्य या लगभग शून्य हो जाने से 10 करोड़ डेयरी किसान परिवार के रोजगार पर हमला होगा। इसी तरह का खतरा गेँहू और कपास (जिसका आयात आस्ट्रेलिया व चीन से होता है), तिलहन (पाॅम आयल के कारण) और प्लाण्टेशन उत्पाद कालीमिर्च, नारियल, सुपाड़ी, इलायची, रबर आदि पर पड़ेगा।
आर.सी.ई.पी. का भारतीय किसानों पर प्रभाव आयात शुल्क तक सीमित नहीं है। इससे विदेशी कम्पनियों का असर बीज के पेटेन्ट व फसलों व पशुओं के प्रजनन के अधिकार पर भी पड़ेगा। इससे विदेशी कम्पनियों को खेती की जमीन अधिग्रहीत करने, अनाज की सरकार खरीद में हस्तक्षेप करने, खाद्यान्न प्रसंस्करण में निवेश करने तथा ई-व्यापार बढ़ाकर छोटी दुकानदारी को नष्ट करने से भारतीय किसान और अधिक मात्रा में कारपोरेट पर निर्भर हो जाएंगे, जिनका मुनाफा किसानों की कीमत पर बढ़ेगा। इन सब मामलों में सरकार को स्पष्टीकरण देना चाहिए।
एआईकेएससीसी 29 व 30 नवम्बर 2019 को दिल्ली के मावलंकर हाल में अपना राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित करेगा। एआईकेएससीसी के 250 संगठन सदस्यों के हजार से ज्यादा प्रतिनिधि इसमें भाग लेंगे और वे किसानों की लम्बित मांगों पर चर्चा करके आगे के संघर्ष की योजना बनाएंगे। वे आर.सी.ई.पी. जैसे समझौतों द्वारा किसानों के बढ़ते संकट व खाद्य सुरक्षा पर इसके खतरों पर भी चर्चा करेंगे। अधिवेशन को सभी 250 संगठनों के नेता सम्बोधित करेंगे।
एआईकेएससीसी प्रतिनिधि मंडल कश्मीर यात्रा कर सेब के किसानों से मुलाकात करेगा। सेब के किसान एक गहरे संकट का सामना कर रहे हैं। प्राकृतिक आपदा के कारण 2 साल तक फसल बरबाद होती रही और इस साल जब अच्छी फसल हुई तो उसकी बिक्री नहीं हो रही है। सरकार की नाफेड द्वारा फसल खरीदने की योजना पूरी तरह विफल रही। एआईकेएससीसी मांग करती है कि किसानों के खेतों से सेब सरकार को खरीदना चाहिए और फसल का पूरा मूल्य किसानों को देना चाहिए। जिन किसानों व व्यापारियों को घाटा हुआ है उनकों मुआवजा दिया जाना चाहिए। एआईकेएससीसी नेताओं का एक प्रतिनिधि मंडल जल्द ही कश्मीर जाएगा और वहां के सेब के किसानों से मिलकर जमीनी सच्चाई से रूबरू होगा और समस्या के समाधान के लिए सरकार को सकारात्मक सुझाव देगा।
एआईकेएएससीसी ने भारत सरकार से पुनः मांग की है कि वह स्वामीनाथन आयोग के फार्मूले सी2$50 फीसदी के हिसाब से फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करे। खेद की बात है कि सरकार ने इस मांग की अवहेलना की है और हाल में रवि फसलों की घोषित एमएसपी एक बार फिर बहुत कम है। एआईकेएससीसी ने इस पर एक बिल प्रस्तावित कर संसद में पेश किया था और वह इस मांग पर देशव्यापाी आन्दोलन आगे बढ़ाएगी।
भारत सरकार सभी किसानों को उनकी फसल का घोषित समर्थन मूल्य दर पर दाम दिलाने में विफल रही है। प्रधानमंत्री ने खुद संसद में इसकी घोषणा की थी पर वह इसे भूल चुके हैं। किसानों को उनकी फसल का घोषित रेट मिले, इसके लिए जरूरी है कि फसल के जा मापदंड तय हैं, उनमें इस साल की प्राकृतिक आपदा की स्थितियों को देखते हुए रियायत करनी चाहिए।
एआईकेएससीसी की एक और मूल मांग है कर्ज से मुक्ति, जो उचित लाभकारी दाम न मिलने की वजह से विकृत हुई है। इस सवाल पर भी एआईकेएससीसी ने एक बिल संसद में पेश किया है पर उसे अभी तक पारित नहीं किया गया है। किसान कर्ज में फंसे हुए है और आत्महत्याएं कर रहे हैं, पर सरकार इस आंकड़े को भी छिपाने में लगी है। एआईकेएससीसी ने मांग की है कि सरकार सभी किसानों को कर्ज से मुक्त करे। वह इस पर देशव्यापी आन्दोलन चलाती रहेगी।