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वित्त मंत्री की ग़ैर मोजूदगी में PMO और नीति आयोग में बजट पर मीटिंग ?-कांग्रेस

कांग्रेस 6 दिनों दिनो तक रोज एक स्पेशल प्रेसवार्ता करेगी

नई दिल्ली : आने वाली एक फरवरी को भारत सरकार अपना बजट पेश करेगी और कांग्रेस पार्टी ने यह तय किया है कि आने वाले 6 दिनों में हम हर रोज एक स्पेशल प्रेसवार्ता करेंगे और जो जनता के मुद्दे हैं, अर्थव्यवस्था से जुड़े मुद्दे, वो एक-एक करके हम आपके समक्ष लाएंगे,  पिछले चार सालों में फाइनेंशियल ईयर 2016-17 में नोटबंदी हुई, 2017-18 में जीएसटी लागू की गई, 2018-19 में इकॉनमिक स्लो डाउन होना शुरु हुआ और क्वार्टर दर क्वार्टर, तिमाही दर तिमाही ग्रोथ गिरती गई औऱ फिर 2019-20 का जो वित्तीय वर्ष होता है, उसमे सरकार डिनायल में रही औऱ जो स्लो डाउन है, वो और गहरा हो गया, तो आज जब हम बजट से शायद 5 दिन पहले बात करते हैं, We are at the brink of stagflation; we are at the risk of stagnating economy slipping into stagflation and I say that with full responsibility मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ कहती हूँ कि हम लोगों की जो इकॉनमी है, इंडिया की जो अर्थव्यवस्था है, वो कहीं न कहीं स्टैगफ्लेशन की तरफ बढ़ती हुई दिख रही है, और इसलिए दिख रही है क्योंकि इंफ्लेशन बढ़ता जा रहा है, इंफ्लेशन पीक हो रहा है, 7.4% लास्ट रीडिंग थी, और ग्रोथ की दर धीमी होती जा रही है, इकॉनमी धीमी होती जा रही है।

स्टैगफ्लेशन होता है, इकॉनमी स्लोडाउन होती है, इंफ्लेशन बढ़ता है और एक ऐसी सिचुएशन आ जाती है जिसमें कि इंवेस्टमेंट आना बंद हो जाता है और अब वो सिचुएशन और भी ज्यादा गंभीर होगी, क्योंकि इंवेस्टमेंट ऑलरेडी इस इकॉनमी में हो नहीं रहा है, अर्थव्यवस्था में निवेश हो नहीं रहा है और ये सिचुएशन और बदतर होगी। स्टैगफ्लेशन के दौरान इंफ्लेशन (महंगाई), प्राइसेस जो हैं और बढ़ते हैं और ये आम आदमी पर मार है। स्टैगफ्लेशन के दौरान क्योंकि इंवेस्टमेंट नहीं होता है तो नौकरियाँ नहीं बनेगी। नौकरियाँ नहीं बनेगीं तो कहीं न कहीं ग्रामीण इलाकों में या शहरी क्षेत्रों में भी जिसको कहते हैं कंजम्पशन पर मार पड़ेगी और कंपम्पशन याद रखियेगा, उपभोग जो है, वो हमारी इकॉनमी का, हमारी अर्थव्यवस्था का दो-तिहाई हिस्सा है। उपभोग हर तरह का चाहे एफएमसीजी गुड्स हों, चाहे, कार हो, जूते हों, कपड़े हों, जिस भी चीज का हम उपभोग करते हैं, वो हमारी इकॉनमी का दो-तिहाई हिस्सा है, इसलिए कंजम्पशन में जो गिरावट हो रही है, वो बहुत चिंताजनक है और उसके बारे में मैं दो मिनट बात करूँगी। स्टैगफ्लेशन के चलते इंवेस्टमेंट, जॉब्स, रूरल स्ट्रैस औऱ कंजम्पशन सब प्रभावित होगा और एक विशियस साइकिल (Vicious Cycle) बन जाती है, जहाँ पर कम ग्रोथ से जॉब्स, जॉब्स से कंजम्पशन, कंजम्पशन से इंवेस्टमेंट प्रभावित होता जाता है और उस डाउनवर्ड स्पाइरल से, उस निरंतर गिरते ग्राफ से निकलना बहुत मुश्किल हो जाता है।

पहला मुद्दा जिसको हम हाईलाइट करेंगे, वो फिस्कल सिचुएशन है। फिस्कल सिचुएशन जो होती है, जो राजकोषीय घाटा होता है, वो एक आंकड़ा है। पर वो आंकड़ा मात्र नहीं है, 3.3%, 3.5%, 3.8% इस तरह से पिछले 5-6 सालों से ये निरंतर बढ़ता ही गया है, कंट्रोल नहीं हुआ है। हमारा मानना ये है और हम इसको हाईलाइट करना चाहते हैं कि पिछले 20 सालों में, और इस आंकड़े को ध्यान से सुनिएगा, पिछले 20 सालों में पहली बार डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन में कमी हुई है। पहली बार पिछले 20 सालों में डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन की, जो इंकम टैक्स हम और आप पे (Pay) करते हैं उसमें कमी हुई है और ये सीधा प्रमाण है घटते हुए वेजेस का और बेरोजगारी का।

लोगों के पास कम रोजगार है, इसलिए वो कम टैक्स पे कर रहे हैं और पहली बार 20 सालों में, दो डैकेड्स में पहली बार टैक्स कलेक्शन में गिरावट आई है और ये ऑर्गेनाइज्ड सेक्टर में पीड़ा का साइन है। इसीलिए गर्वमेंट की आय कम हो रही है, बहुत बड़ा खतरा है कि फिस्कल डैफिसेट बढ़ेगा। एक्पर्ट्स का कहना है कि Fiscal deficit can be anywhere between 4.6% and 4.8% of the GDP अगर जीडीपी ग्रोथ 5 प्रतिशत से कम होती है तो फिस्कल डैफिसेट और बढ़ेगा एक डिफ्लेटर नाम की चीज होती है, उससे को रिलेशन होता है। तो अगर फिस्कल डैफिसेट बढ़ता है तो क्या चिंता है? फिस्कल डैफिसेट बढ़ने की दो चिंता है, फिस्कल डैफिसेट बढ़ना के मतलब होता है इंफ्लेशन और तीव्रता से बढ़ेगा, प्राइसेस और तीव्रता से ऊपर जाएंगे और दूसरी चिंता ये है कि फिस्कल डिसिप्लेन को क्रेडिट रेटिंग एजेंसीज, जैसे- मूडीज हो गई, एसएमपी हो गई, फिच हो गई, ये लोग बहुत तीव्रता से और बहुत कुशाग्रता से देखते हैं और इनका कहना है और इन्होंने बार-बार रेड फ्लैग किया है कि फिस्कल डिसिप्लेन होना जरुरी है। तो क्रेडिट रेटिंग एजेंसीज अगर आपका फिस्कल इनडिसिप्लेन बढ़ेगा, आपकी सॉवरेन रेटिंग को डाउनग्रेड करेंगी, आपकी इंवेस्टमेंट रेटिंग को डाउनग्रेड करेंगी और एक्सपर्ट्स का फिर से कहना है कि अगर फिस्कल इनडिसिप्लेन बढ़ा तो कम से कम सौ बिलियन डॉलर पैसा, भारतीय मार्केटों से, जो निवेश है वो निकल जाएगा और ऐसा इसलिए होगा क्योंकि जो शेयरहोल्डर्स होते हैं उनके बड़े स्ट्रिक्ट क्राइटेरिया होते हैं, वो एक सर्टेन कैटेगरी ऑफ इंवेस्टमेंट मार्केट्स में ही इंवेस्टमेंट करते हैं और अगर हमारी इंवेस्टमेंट रेटिंग घटी, फिस्कल इनडिसिप्लेन बढ़ने से तो वो पैसा बाहर चला जाएगा, इसलिए जरुरी है कि फिस्कल डिसिप्लेन को मेंटेन किया जा सके।

मैंने दो मिनट पहले कंजम्पशन की बात की थी और वो दूसरा मुद्दा है, जिसको हम लोग छूना चाहते हैं। जब कंजम्पशन डाउन है, जब एफएमसीजी जैसी चीजें कम बिक रही हैं, जब खाने का जो उत्पादन है, वो कम बिक रहा है, ग्रामीण क्षेत्रों में तो किसी भी रेस्पौंसिबल सरकार की ये रेस्पॉंसिबिल्टी ये होनी चाहिए थी कि कंजम्प्शन को बढ़ावा दे। आय को बढ़ावा दे, लोगों की जेब में ज्यादा पैसा डाले, जिससे कि वो कहीं न कहीं खर्चा कर सकें। सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया और सरकार ने जनता को रिलीफ नहीं दी, पर वो रिलीफ सरकार ने कॉर्पोरेट्स को दे दी। सरकार ने कॉर्पोरेट टैक्स कम किया और डेढ़ लाख करोड़ रुपए का रेवेन्यू गया उसको कम करने से, करीब-करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपए का रेवेन्यू घाटा हुआ सरकार को। सरकार ने वो कम किया लेकिन आम आदमी को राहत नहीं दी और कंजम्पशन तभी बढ़ता जब मेरी और आपकी जेब में पैसा होता और हम बाजार जाकर ज्यादा चीजें खरीद सकते। तो हमारा मानना ये है कि बजट अगर कंजम्पशन को बढ़ावा देने के लिए कुछ नहीं करेगा तो बाकी सारी बातें बेकार है, कंजम्पशन सबसे पहला और बड़ा मुद्दा है इस बजट का।आप ही लोगों के माध्यम से, समाचार पत्रों के माध्यम से और टीवी चैनल्स के माध्यम से खबर आ रही है कि इंकम टैक्स एग्जम्पशन लिमिट बढ़ाई जा सकती है अगर ऐसा सरकार करती है तो हम उसका बहुत स्वागत करते हैं, वैलकम करते हैं। हम सबको कहीं न कहीं इंकम टैक्स रिलीफ मिलेगी, लेकिन इसके साथ ही दो सवाल खड़े होते हैं।

पहला सवाल है कि सरकार का पहले ही डेढ़ लाख करोड़ रुपए का घाटा है, कॉर्पोरेट टैक्स कट करने पर, जिसने सुँई की नोक इधर से उधर भी नहीं की निवेश पर। तो पहला सवाल ये है कि जब वहाँ पर घाटा है तो आपको अपनी बजट अर्थमैटिक समझानी पड़ेगी। आपको बताना पड़ेगा कि अगर आप अपनी आईटी एग्जम्पशन लिमिट बढ़ा रहे हैं तो आपके पास पैसा आएगा कहाँ से? कितना लौस होगा? कैसे उसको मेकअप किया जा सकेगा?दूसरी चीज शायद जरुरी है क्योंकि बैंडबैगन, एक बोगी शुरु हो गई है कि हम टैक्सपेयर्स हैं, हम टैक्स पेयर्स हैं। कहीं न कहीं ये समझिएगा कि देश का हर व्यक्ति टैक्स पेयर है, इंडायरेक्ट टैक्स सब लोग पे करते हैं। एक माचिस की डिब्बी पर मैं भी उतना टैक्स दे रही हूँ, आप भी उतना टैक्स दे रहे हैं, गांव में भी गरीब आदमी उतना टैक्स दे रहा है। हम सब एक बराबर टैक्स पे करते हैं, तो इंडायरेक्ट टैक्स कम करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए और हमारा आग्रह है सरकार से कि जीएसटी के रेट रेशनलाइजेशन की बात जरुर करिए, आईटी एग्जम्पशन लिमिट अगर आप बढ़ाते हैं उसका स्वागत है, ये सराहनीय कार्य होगा, लेकिन कहीं न कहीं एक बड़ी जनसंख्या को राहत देने की बात करिए और इसलिए जीएसटी रेट रेशनलाइजेशन के बारे में ध्यान दीजिएगा।

पांचवी बात, निवेश की करनी जरुरी है क्योंकि निवेश फिर से टैक्नीकल है, लेकिन इन सब चीजों से रिलेटेड है। अगर कंपनी इंवेस्ट करती है तो जॉब क्रिएट होती है। जॉब क्रिएट होती है, तो कंजम्पशन बढ़ता है। कंजम्पशन बढ़ता है तो निवेश फिर से होता है ये एक वर्चुअल साइकिल है, ये एक अच्छी सकारात्मक साइकिल है।लेकिन एक मिनट फिर से दोबारा टैक्निकल बोल रही हूँ, जरुर सुनिएगा। दादरी में एक पावर प्लांट है, एक एग्जाम्पल दे रही हूँ आपको और पावर प्लांट की टोटल कैपेसिटी होती है सौ प्रतिशत पावर प्रोड्यूस करना। औसतन पावर प्रोडक्शन जो इस समय देश में है, वो 50 प्रतिशत है, उसको प्लांट लोड फैक्टर कहते हैं। औसतन पावर प्रोड्यूसिंग प्लांट 50 प्रतिशत पावर प्रोड्यूस कर रहा है और क्यों ये जरुरी है, इसलिए क्योंकि इलेक्ट्रीसिटी का जनरेशन औऱ उसका उपभोग एक बड़ा क्राइटेरिया होता है, एक बड़ा आंकड़ा होता है ग्रोथ और इंडस्ट्रियल और इकॉनमिक एक्टीविटी को देखने का। तो अगर पावर ही हम प्रोड्यूस होकर, कम खरीदार हैं इसका, इसका मतलब है कि मैन्यूफैक्चरिंग कम है, इसका मतलब है कि इलैक्ट्रिसिटी कंजम्पशन कम है, इकॉनमिक एक्टीविटी वीक है, पहला तो प्लांट लोड फैक्टर हो गया।

दूसरा मैंने इस माध्यम से आपको एक बार पहले भी बताया है कि जो कैपेसिटी यूटिलाइजेशन होता है, जो कंपनीज होती हैं, और जिस तरह से वो अपने लोगों को और मैन्यूफैक्चरिंग फैसिलिटीज को और मशीनों को यूज करती हैं वो मात्र 60-70  प्रतिशत है। तो किस तरह से सरकार कॉर्पोरेट इंडिया से कहेगी कि आप इंवेस्ट करिए वो डायरेक्शन ये बजट निर्धारित करेगा।बड़ी-बड़ी बातें कर देना, लच्छेदार बातें कर देना और दो शहरों को नाप कर ईज ऑफ डूइंग बिजनेस इंडेक्स खड़ा कर देना अलग चीज है। लेकिन कॉर्पोरेट इंडिया, जो गुणगान करती है, मोदी सरकार का, वो इंवेस्ट नहीं कर रही है और इस बजट के माध्यम से इंवेस्टमेंट होना बहुत जरुरी है, क्योंकि जब तक इंवेस्टमेंट नहीं होगा, वो वर्चुअल साइकिल का जो व्हील है, जो पहिया है, वो चलेगा ही नहीं। इसलिए जरुरी है कि सरकार की जो नीतियाँ हो, जो नियम हो, वो इंवेस्टमेंट की तरफ भी फोकस करें, कंजम्पशन और रिलीफ के साथ-साथ।

पांचवा मुद्दा और ये जरुरी मुद्दा फिर से है एक्सपोर्ट का। किसी भी इकॉनमिक लैंडस्केप में, किसी भी इकॉनमी के चार पहिए होते हैं, प्राईवेट इंवेस्टमेंट, पब्लिक इंवेस्टमेंट, एक्सपोर्ट एंड कंजम्पशन। हमारा प्राईवेट इंवेस्टमेंट डाउन है, हमारा एक्सपोर्ट डाउन है, हमारा कंजम्पशन डाउन है एक पब्लिक एक्सपेंडिचर थोड़ा बहुत चल रहा है, लेकिन फाइनेंसिस के डिटोरिएशन के बाद उसमें भी रुकावट आई है तो जरुरी है कि एक्सपोर्ट पर एक मिनट ध्यान दीजिए, क्योंकि कोई भी इकॉनमी आप उठा लीजिए, चाहे चीन हो, चाहे युनाइटेड स्टेट्स हो, किसी भी इकॉनमी की आप बात करिए, चाहे बांग्लादेश हो जो इकॉनमी अभी ज्यादा अच्छी ग्रोथ कर रही है, कोई भी इकॉनमी हायर एक्सपोर्ट रेट के बिना ग्रो कर ही नहीं सकती है, क्योंकि जब एक्सपोर्ट की दर बढ़ती है तो इकॉनमिक दर भी बढ़ती है तो जरुरी है कि एक्सपोर्ट पर ध्यान दिया जाए।डींगे हांकने की बात नहीं है लेकिन एक जमाने में हमारा एक्सपोर्ट 20 प्रतिशत के लगभग था, अब पिछले पांच महीनों से लगातार, निरंतर गिरता जा रहा है। और मैं एक दिन टीवी पर देख रही थी, भाजपा के एक वक्ता थे, वो कह रहे थे, लेकिन इंपोर्ट भी घट रहा है। इंपोर्ट का घटना बुरी बात है, इंपोर्ट का घटना बुरी खबर है, इंपोर्ट के घटने का मतलब है कि कहीं न कहीं आपके यहाँ मैन्युफैक्चरिंग, इकॉनमिक एक्टीविटी हो ही नहीं रही है, इसलिए इंपोर्ट भी घट रहा है, आपको वो सब चीजें इंपोर्ट करने की जरुरत नहीं  पड़ रही है। तो एक्सपोर्ट और इंपोर्ट पर ध्यान देना जरुरी है क्योंकि बिना उनकी ग्रोथ के आर्थिक स्थिति मजबूती से बढ़ ही नहीं सकती है।

और छठी और अंतिम बात हम जरुर करना चाहेंगे और ये है किसान की, क्योंकि बिना किसान की आय बढ़े, जो एग्रीकल्चर सेक्टर्स हैं, बिना उनका भला हुए There can be precious little done to the economy and if data is anything to go by then the agriculture sector will grow at under 2%, whereas the Government have promised doubling farm income किसान की आय दोगुनी करने की बात की थी सरकार ने, दोगुनी तो छोड़ दीजिए, सरकार के रहमोकरम के चलते आज किसान की आय आधी हो चुकी है, वो कर्जे के बोझ के अंदर है, कर्जे के अंदर डूबा हुआ है, उसको अपने उत्पाद का पूरा पैसा भी वसूल नहीं हो रहा है। तो कहीं न कहीं ये बजट सुर्खियों से हटकर, सुर्खी बटोरने से हटकर इस बजट को वास्तव में कृषि और किसान के लिए क्या करना है, वो तय करना होगा।

मैं अंतिम बात बस यही कहकर खत्म करूँगी कि अभी थोड़े दिनों पहले प्रधानमंत्री जी 10-12 बड़े उद्योगपतियों से मिले, It could have been a big confidence boosting measure लेकिन बजट कवर करने के नाते कुछ सालों से ये भी जानती हूँ कि बजट तो प्रिंट होने के लिए चला जाता है, पांच दिन, छः दिन पहले, अब तो स्पीच प्रिंट हो रही होगी, होने की तैयारी हो रही होगी, तो उनके कौन से सुझाव सरकार ने इंक्लूड किये हैं वो हम जरुर जानना चाहेंगे क्योंकि क्या ये सिर्फ आंख पर पट्टी बांधने की बात थी? Was it just an eye wash, was it just a tea meeting, what sort of meeting was this and more than anything else, as somebody who has covered Finance Ministry for a very long time, how can there be meetings on the Budget. बजट पर मीटिंग नीति आयोग कर रहा है, बजट पर मीटिंग पीएमओ में हो रही है और वहाँ पर वित्तमंत्री मौजूद ही नहीं हैं। कहीं न कहीं ये बहुत बड़ा सवाल खड़ा करती है कॉन्फिडेंस पर। कहीं न कहीं ये बड़े सवाल उठाती है कि क्यों नहीं वो मौजूद थी, आफ्टर ऑल बजट तो वही पेश करेंगी और किस तरह के सुझाव इंडियन इंडस्ट्री से आए? हमारा ये मानना है कि सरकार को इस बजट के माध्यम से एक मीडियम टू लॉंग टर्म विजन इंडियन इकॉनमी की स्ट्रेटजी बनाने पड़ेगी। वो मस्क टेप, बैंडेड अप्रोच यहाँ पर घटा तो, यहाँ से भर दो। वहाँ से घटा तो वहाँ से भर दो। ये जो घटतौली का काम है, ये बंद करना पड़ेगा। Indian economy needs utmost attention of the Government and the Government has to be prepared and which is why the world will watch. मैं सिर्फ ये अपनी बात कहकर खत्म करना चाहती हूँ कि पिछली बार बजट का बहीखाता बोला गया था और एक लाल कपड़े में लपेटकर लाया गया था और उसके बाद रोल बैक हुए थे, जिससे की इंडियन इकॉनमी में कॉन्फिडेंस शेक हुआ है।

Investment is an act of faith. जब एक व्यक्ति अपना पैसा लगाता है, वो निवेश करता है तो वो ये सोचता है कि इकॉनमिक पॉलिसी प्रेडिक्टेबल होंगी, उनकी लौंगिविटी होगी, वो लंबे समय तक रहेंगी और बार-बार बदली नहीं जाएंगी। तो सोच-समझकर हमारी आशा है बजट बनाया गया है क्योंकि अधपके और कम सोचे हुए जो सुझाव होते हैं और जब वो बजट में आ जाते हैं और उनका रोल बैक होता है, तो कहीं पर ये हमारी इकॉनमिक क्रेडिबिलिटी और क्रेडिंशियल को जरुर क्वेश्चन करते हैं। मैं ये भी आप लोगों के माध्यम से सभी को बताना चाहती हूँ कि अगले 4-5 दिन हम लोग मुद्दों की स्पेसिफिक बात करेंगे। आज हम लोगों ने कॉन्टैक्सट सैट किया है, स्टेट ऑफ दी इकॉनमी की बात करके। हम लोग मुद्दों पर स्पेसिफिक बात करेंगे औऱ उसमें हम लोग इंवेस्टमेंट कैसे किक स्टार्ट किया जाए, कैसे कंजम्पशन बूस्ट हो सकता है, किस तरह से एक्सपोर्ट रिवाइव हो सकते हैं, एग्रीकल्चर में क्या करना चाहिए, इन मुद्दों की बात जरुर करेंगे, बेसिकली कॉन्टैक्स सैट करेंगे और आशा करेंगे कि जो यूनियन बजट आ रहा है, वो मूल मुद्दों की बात करेगा और फोकस दोबारा से इकॉनमी पर, जॉबलेसनेस पर, धीमी गति की ग्रोथ पर होगा, आर्थिक मंदी पर होगा और कहीं इन सब  विषम परिस्थितियों से निपटने की योजना ये बजट बनाएगा।

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