भारत में दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित 10 में 1 व्यक्ति को ही सही उपचार प्राप्त होता है
दुर्लभ रोग दिवस पर, ध्यान जागरूकता, बेहतर आर,हडडी और देश में आनुवंशिक वाहक स्क्रीनिंग को अनिवार्य बनाने पर होना चाहिऐ
नई दिल्ली 28 फरवरी 2020 अनुमान बताते हैं कि भारत में 70 मिलियन से अधिक लोग दुर्लभ बीमारियों से प्रभावित हैं। आबादी के ,क छोटे से हिस्से में इसके प्रसार के बावजूद, यह देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती के रूप में उभर रही है। इसके अलावा, 10 में से केवल 1 पीड़ित को उचित उपचार प्राप्त होता है। दुर्लभ रोग दिवस पर, इन स्थितियों के प्रति जागरूकता बढ़ाने और आने वाले समय में प्रारंभिक- आनुवंशिक स्क्रीनिंग के महत्त्व की आवश्यकता को समझाना जरुरी है।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल ही में दुर्लभ रोग 2020 के लि, राष्ट्रीय नीति तैयार की जो कि 2017 में जारी पूर्व मसौदे का संशोधित संस्कर है। हालांकि, नई नीति में उपचार उपलब्ध होने का उल्लेख है लेकिन यह केवल कुछ श्रेनियों तक ही सीमित है। अन्य बीमारियों को शामिल करने और यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि इन रोगो के बारे में जागरूकता पैदा करने के अलावा, इस में अनुसंधान और विकास पर अधिक ध्यान दिया ।
दुर्लभ बीमारी ,क प्रकार की स्वास्थ्य स्थिति है जिसका प्रसार कम होता है और कम संख्या के लोग़ो को प्रभावित करती है। सबसे आम बीमारियों में हेमोफिलिया, थैलेसीमिया, सिकल-सेल ,नीमिया और बच्चों में प्राइमरी इम्यूनो डेफिशि,सी , ऑटो-इम्यून रोग और लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर शामिल हैं।
आशीष दुबे, सीओओ और सह-संस्थापक, रेडक्लिफ लाइफ साइंसेज, दुर्लभ बीमारियों की व्यापकता और इस तथ्य को देखते हु, कि उनके उपचार पर शोध जारी है, यह सुनिश्चित करना महत्वर्पूण है कि हर मां प्रारंभिक अवस्था में आनुवंशिक जांच से बच्चे के जन्म के बाद किसी भी आनुवंशिक विश्लेषण को अब गर्भावस्था के शुरूआती तिमाही में भ्रूण में ही किया जा सकता है। कई स्थितियों की स्क्रीनिंग प्रसवपूर्व देखभाल का जरुरी चरण होना चाहिऐ । क्रिस्टा के माध्यम से हम यह सुविधा प्रदान करते हैं, जिससे माता-पिता यह समझ सकते हैं कि क्या पैदा होने वाले बच्चे में किसी भी तरह की बीमारियों की संभावना है। निदान के मामले में, यह उस स्थिति के विशिष्ट उपचार के लि, जरुरी भी है। देश के भीतर कई हेल्थ-टेक स्टार्टअप, सही दवा के उपयोग का नेतृत्व कर रहे हैं।
भारत में दुर्लभ बीमारियों के बारे में जागरूकता की कमी है जिसकी वजह से व्यापक निवारक रणनीति की अत्यंत आवश्यकता है। दुर्लभ बीमारी के साथ बच्चों के जन्म को रोकने और माता-पिता को र्निणय लेने में मदद करने के लि, आनुवंशिक स्क्रीनिंग कार्यक्रमों पर जोर दिया जाना चाहिऐ ,।
पोर्टिया मेडिकल के चिकित्सा निदेशक डॉ विशाल सहग ल ने इस बारे में कहा, बीमारियां चिकित्सा और सामाजिक लिहाज से चिंता का विषय हैं। इन स्थितियों वाले लोग न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि भावनात्मक का भी सामना करते हैं। गर्भवती महिलाओं को जोखिम वाले कारकों को समझने के लि, स्क्रीनिंग अनिवार्य है क्योंकि दुर्लभ बीमारियों के साथ पैदा होने वाले बच्चों के मामले में, प्राथमिक देखभाल ,क महत्वर्पूण भूमिका निभाती है। कई बीमारियों को रोग़ो के पूरे जीवन में सहायक उपचारों या प्रशासित प्रतिस्थापन उपचारों के साथ प्रबंधित किया जा सकता है। ऐसे समय में पोर्टिया जैसे संगठन सहायक भूमिका निभा सकते हैं जो मरीजों को अपनी स्थिति का प्रबंधन करने में मदद कर सकते हैं।पद्म श्री अवार्डी, डॉ के के अग्रवाल सदर हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया (HCFI) और कन्फेडरेशन ऑफ ओने शिया ,गड ओशिनिया (CMAAO),, ने कहा निजी रोगों में दुर्लभ बीमारियों के लि, उपचार के विकल्प भी उपलब्ध हैं लेकिन फॉलो-अप थेरेपी के लि, फंडिंग जुटाने की आवश्यकता है। उदाहरण के लि,, कुछ इम्यूनो डेफिशि,सी डिसऑर्डर्स के मामले में जिन्हें उपचार से ठीक किया जा सकता है। सरकार को दुर्लभ बीमारियों के लि, कवर प्रदान करने के लि, बीमा अधिनियम में संशोधन करने पर भी विचार करना चाहि, और योजना को सीजी,च,स, पी,सयू, ई,सआर आदि के तहत बढ़ाया जाना चाहि,।दुर्लभ बीमारियों के लि, वैश्विक स्तर पर उपलब्ध अधिकांश निदान और उपचार अब भारत में भी उपलब्ध हैं। हाल ही में जारी नीति के तहत, सरकार ने कुछ उपचार योग्य दुर्लभ बीमारियों के लि, ,कमुश्त उपचार लागत के लिहाज से 15 लाख रुप, की निधि देने का प्रस्ताव रखा है।
रोग़ अपनी प्रमुख स्वास्थ्य बीमा योजना, आयुष्मान भारत की प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत इसे पाने के पात्र हैं। शोधकर्ताओं ने हाल ही में भारतीयों की जीनोम अनुक्रमण की छह महीने की पायलट परियोजना का निष्कर्ष निकाला, जिसका अर्थ है कि दुर्लभ बीमारियों की समस्या का समाधान संभव है।