दिल्ली | सुनवाई के दौरान सीएचएसएल 2017 और सीजीएल 2017 में व्यापक पैमाने पर हुए धांधली के आरोपों को ध्यान में रखते हुए एसएससी छात्रों के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि एक कमिटी के गठन हो जो इन आरोपों को देखने के अलावा आगे की परीक्षाओं में सुधार संबंधी सुझाव भी दे सकें। अदालत ने पूरी बात सुनकर सदस्यों के नामों पर सुझाव लेने और कमिटी के काम के दायरों पर सुनने के बाद निम्नलिखित सात-सदस्यीय कमिटी के गठन किया:
1. जस्टिस (सेवानिवृत) जी एस सिंघवी, अध्यक्ष
2. श्री नंदन नीलेकणि
3. डॉ. विजय भाटकर
4. श्री राजीव करंदीकर
5. डॉ संजय भारद्वाज
6. भारत सरकार का प्रतिनिधि
7. केंद्रीय अनवेंशन ब्यूरो
समिति के कार्य का दायरा:
• क्या सीबीआई द्वारा की गई जाँच के आधार पर निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि पूरी परीक्षा प्रक्रिया दोषपूर्ण थी? यदि हाँ, तो क्या उन लोगों को चिन्हित किया जा सकता है जिन्होंने धांधली का फायदा उठाया?
• क्या पेपर लीक के अलावा किसी अन्य तरह के धांधली और अवांछित तरीकों का भी अपराधी उम्मीदवारों द्वारा इस्तेमाल किया गया? क्या ये इतने बड़े पैमाने पर अंजाम दिए गए जिससे कि पूरी परीक्षा प्रक्रिया को ही दोषपूर्ण माना जाए?
• क्या मामले के हर पहलू को देखते हुए और पूरी प्रक्रिया की जाँच के बाद कमिटी यह सुझाव देगी कि सवालों के घेरे में आये पूरी परीक्षा को ही रदद् कर दिया जाए या फिर इस परीक्षा से संबंधित हर व्यक्तिगत मामले को अलग अलग देखा जाए?
• परीक्षाओं को दोषमुक्त करने के लिए ग़ैरकानूनी या अवांछित तरीकों से निपटने के लिए किन तकनीकी बातों का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है ताकि चयन प्रक्रिया ईमानदार और सुचारू ढंग से चल सके?
• यदि कमिटी को लगता है कि परीक्षा को दुबारा करवाने की आवश्यकता है तो क्या आने वाली एसएससी की परीक्षाएं आयोग द्वारा चयनित वेंडर के माध्यम से हो या नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) जैसे विश्वसनीय सरकारी एजेंसी से करवाया जाए?
• इन सब के अलावा कमिटी कोई भी अन्य सुझाव दे सकती है जिससे ऐसी परीक्षाओं को भविष्य में दोषपूर्ण ढंग से करवाया जा सके।
अदालत ने यह भी कहा कि सीबीआई जाँच की केस डायरी और सभी स्टेटस रिपोर्ट कमिटी को सौंपे जाएं। अदालत ने फिलहाल सीजीएल 2017 और सीएचएसएल 2017 पर लगी रोक को हटा दिया और निर्देश दिया कि इन परीक्षाओं के परिणाम कमिटी के अंतिम रिपोर्ट पर निर्भर करेगी। एसएससी छात्रों के अधिवक्ता की मांग पर अदालत ने उच्च स्तरीय कमिटी को तीन महीने में अपनी रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया।
युवा-हल्लाबोल ने इतने लंबे इंतजार के बाद भी छात्रों को न्याय न मिलने पर आक्रोश जताया है। आंदोलन के तरफ से जारी प्रेस बयान में कहा गया है कि साल भर से ज़्यादा बीत जाने के बाद भी एसएससी घोटाला करने वालों और उनसे फायदा लेने वालों को हमारी सरकार और सीबीआई पकड़ नहीं पाई। सीबीआई की एफआईआर में नामज़द एसएससी के वो अज्ञात अधिकारी अज्ञात ही रह गए। सत्ता में बैठे वो लोग अज्ञात ही रह गए जिनके शह से इतना बड़ा नेक्सस चल रहा था। मोदी सरकार ने साबित कर दिया कि युवाओं के भविष्य और एसएससी में सुधार से इनका कोई लेना देना नहीं है। इन्हें तो बस युवाओं को बेरोज़गार रखकर समाज में नफरत फैलाने के काम पर लगाना है।
सुप्रीम कोर्ट ने एक 7-सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति का भी गठन किया है जो भर्ती परीक्षाओं में धांधली, भ्रष्टाचार और अनियमितता को दूर करने के ठोस सुझाव देगी। जस्टिस सिंघवी की अध्यक्षता वाली इस समिती में नंदन नीलेकणि और विजय भाटकर भी हैं जिनको अपनी रिपोर्ट जमा करने के लिए तीन महीने का समय दिया गया है! कोर्ट ने भले ही अभी रिज़ल्ट पर लगा स्टे हटा दिया हो लेकिन अंतिम फैसला कमिटी की रिपोर्ट के आधार पर लिए गए रिट पेटिशन पर निर्भर करेगा।
हमारा संघर्ष तब तक जारी रहेगा जब तक कि भर्ती परीक्षाओं में भ्रष्टाचार का खात्मा न हो जाए और बेरोज़गार युवाओं के साथ न्याय न हो!
जय हिंद। जय युवा-हल्लाबोल!