नई दिल्ली , कांग्रेस की तरफ़ से आनंद शर्मा ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा राज्यसभा में संपन्न हुई है। पिछले कल लोकसभा में हुई थी और आज राज्यसभा के अंदर हुई है। कई विषय उठाए गए थे,प्रतिपक्ष के द्वारा चाहे वो सरकार की घोषणाओं के बारे में हो, सरकार का ये दावा कि भारत के विकास का सफर, उसकी बुनियाद 2014 में डाली गई, केवल 2014 के बाद की उपलब्धियों का जिक्र। पिछले पांच साल का लेखा जोखा नहीं दिया, जवाबदेही से सरकार भाग रही थी। प्रधानमंत्री जी ने अपने उत्तर में लंबा भाषण तो दिया, व्यंग्य भी किया पर उन्होंने उन बुनियादी बातों का उत्तर नहीं दिया, जो हमने उठाई थी। न उन्होंने बेरोजगारी पर कुछ कहा और किसान पर उनका बयान बिल्कुल गुमराह करने वाला था।
विपक्ष के नेता ने कभी ये नहीं कहा था कि किसान को आपने पैसा दिया। ये कहना कि चुनाव के दौरान मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट जब लगा हो, तब आपने किया, वो चुनाव आयोग पर सवालिया निशान लगाता है। तो प्रधानमंत्री का बयान सही नहीं था। मैं स्पष्ट शब्दों में कहना चाहता हूँ कि प्रधानमंत्री ने काउंसिल ऑफ स्टेट्स यानि के राज्यसभा,जो संविधान में संसद का पहला सदन है और उस सदन की स्थापना इसलिए की गई थी कि एक तो राज्यों की बात, उनके अधिकार, उस पर बात हो सके, सुरक्षित रहें, साथ-साथ कोई भी कानून बिना जांच परख के जल्दबाजी में न बने।
प्रधानमंत्री ने गलत आरोप पूरी राज्यसभा पर लगाया कि पिछले पांच साल में राज्यसभा में रुकावट डाली है और कई बिल लैप्स हो गए हैं। सरकार को 2004 से 2014 तक के तमाम आंकड़े हर सत्र के देने चाहिए। किस तरह से राज्यसभा और लोकसभा में व्यवधान था, जब भाजपा विपक्ष में थी। जब इस सरकार ने यह रास्ता अपनाया, लोकसभा में इनके पास बहुमत है और जो महत्वपूर्ण कानून है, संविधान के संशोधन हैं, उनको लोकसभा में स्टैंडिंग कमेटी में न भेजना, बल्कि सीधा पास कराना। तो राज्यसभा से ये अपेक्षा भी की जाती है, राज्यसभा की संवैधानिक जिम्मेवारी भी यही है कि अगर कोई बिल जिसकी स्क्रूटनी नहीं हुई है, कानून बनने से पहले, वो की जाए, राज्यसभा उसको सिलेक्ट कमेटी को भेजती है।
प्रधानमंत्री क्या चाहते हैं कि लोकसभा से ये मोहर लगवाएं और राज्यसभा बिना सवाल किए एक रबर स्टम्प की तरह उस पर अपनी स्वीकृति दे, ये संभव नहीं है। दुर्भाग्य की बात है कि जो प्रधानमंत्री भारत के प्रजातंत्र की,जो सबसे बड़ा प्रजातंत्र है दुनिया में, आज ही अपने भाषण में उन्होंने कहा, अगर उसकी बात करते हैं, तो प्रजातंत्र की और संसदीय प्रजातंत्र की भावना को उनको स्वीकार करना चाहिए, उस पर उनको आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
दूसरी बात माननीय प्रधानमंत्री ने जो सही बयान नहीं दिया, हम उसको बिजनेस एडवाइजरी कमेटी में भी कल उठाएंगे कि उनको बहुत याचना करनी पड़ी क्योंकि उनको आज बाहर जाना था कि राज्यसभा मे वो समय पर पहुँच जाएं, ये बिल्कुल गलत बयान है। जब ये लोकसभा और राज्यसभा का संसद का सत्र हुआ है, राज्यसभा की बिजनेस एडवाइजरी कमेटी में चेयरमैन ने जो कहा, सरकार की तरफ से प्रस्तावना आई कि 26 तारीख को 2 बजे माननीय प्रधानमंत्री अभिभाषण पर चर्चा के प्रस्ताव का उत्तर देंगे। विपक्ष ने बिना एक प्रश्न किए ये स्पष्ट किया कि जो भी समय प्रधानमंत्री को सुविधानुसार हो, उसी समय प्रधानमंत्री बोलें और हम उसको स्वीकार करते हैं। हमने यहाँ तक कहा कि हम जानते हैं कि प्रधानमंत्री की और कमिटमेंट्स है, कि देश के प्रधानमंत्री के नाते उनकी और जिम्मेवारी है, उनको जापान जाना है, इसलिए जो सरकार ने समय कहा है, जो तारीख कही है हम उसके लिए तैयार हैं।